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________________ भगवान् महावीर की मांगलिक विरासत विरासत महावीर के उपदेश से मिलती है, वही उपनिषद् से भी मिलती है । और, बुद्ध तथा ऐसे ही अन्य महान् वीरों ने उसके अलावा और कहा भी क्या है ? महावीर यानी भूमा : इसी अर्थ में, अगर में उपनिषद् का शब्द 'भूमा' इस्तेमाल कर कहूं कि महावीर यानी भूमा, और वही ब्रह्म, तो उसमें कोई असंगति नहीं होगी। महावीर भूमा थे, महान् थे इसी कारण वे सुख रूप थे, इसी कारण वे अमृत थे । उन्हें दुःख कभी स्पर्श नहीं कर सकता, उनकी कभी मृत्यु नहीं होती। दुःख और मृत्यु 'अल्प' की होती है, 'ह्रस्व दृष्टियुक्त' की होती है, पामर की होती है, वासना-बद्ध की होती है । उसका सम्बन्ध सिर्फ स्थूल और सूक्ष्म शरीर के साथ ही संभव है । जिस महावीर के सम्बन्ध में मैं बोल रहा हूं, वह तो स्थूल-सूक्ष्म उभय शरीर से परे होने से 'भूमा' है, 'अल्प' नहीं । विन्दु में सिन्धु: ____इतिहासकार की पद्धति से सोचने पर यह प्रश्न सहज ही पैदा होता है कि महावीर ने जो मंगल विरासत अन्यों को दी, वह उन्होंने किससे, किस प्रकार प्राप्त की ? इसका उत्तर सरल है । शास्त्र में कहा है, और व्यवहार में भी कहा जाता है कि विन्दु में सिंधु समाता है । सुनने पर यह उलटा-सा लगता है। कहां विन्दु और कहा सिन्धु ? सिन्धु में तो विन्दु रहता है, किन्तु विन्दु में सिन्धु किस तरह रह सकता है ? फिर भी यह वात विलकुल सही है । महावीर के स्थूल जीवन का परिमित काल समुद्र का एक बिन्दु मात्र है । भूतकाल तो भूत है, सतरूप में से रहता नहीं ।। हम कल्पना नहीं कर सकते उतनी त्वरा से वह आता है, और जाता है, किन्तु उसमें संचित हुए संस्कार नये-नये वर्तमान के विन्दु में समाते जाते है । भगवान् महावीर ने जीवन में जो आध्यात्मिक विरासत प्राप्त की और सिद्ध की, वह उनके पुरुषार्थ का फल है, यह सही है, किन्तु उनके पीछे अज्ञात भूतकाल की उसी विरासत की सतत परम्परा रही है। कोई उन्हें ऋषभ, नेमिनाथ या पार्श्वनाथ आदि की परम्परा के कह सकते हैं. किन्तु मैं उसको एक अर्धसत्य के तौर पर ही स्वीकार करता हूं। भगवान महावीर के पहले मानव-जाति ने ऐसे अनेक महापुरुष पैदा किये हैं। वे चाहे किसी भी नाम से प्रसिद्ध हुए हों या अज्ञात भी रहे हों, उनसमग्र आध्यात्मिक पुरुषों की साधना-संपत्ति मानव-जाति में उत्तरोत्तर इस प्रकार संक्रान्त होती रही कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह सारी संपत्ति किसी एक ने ही साधी है । ऐसा कहना केवल भक्ति कथन होगा । भगवान् महावीर ने भी ऐसे ही आध्यात्मिक काल स्रोत से उपरोक्त मांगलिक विरासत प्राप्त की और स्वपुरुपार्थ से उसको संजीवित कर विशेष रूप से विकसित किया तथा उसे देशकालानुकूल समृद्ध कर हमारे सामने रखा । मैं नहीं जानता कि उनके उत्तरकालीन त्यागी संतों ने उसे मांगलिक विरासत से कितना प्राप्त किया और कितना साधा, किन्तु कह सकते हैं कि उस विन्दु में, जैसे. भूतकाल का महान् समुद्र समाविष्ट है, वैसे ही भविप्य का अनन्त समुद्र भी उस विन्दु में समाविष्ट है, अर्थात भविष्य की धारा उसी विन्दु द्वारा चलेगी और अनवरत चलेगी।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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