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भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य
'युग के संदर्भ में, देश और काल के परिवेश में तथ्यों पर नये ढंग से सोचना अपेक्षित है । ' महावीर की विचार धारा को इसी परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने की श्रावश्यकता है । महावीर ने कहा - 'आदमी आदमी एक हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं है । उन्होंने मानव मात्र को अपने
स्तित्व का ज्ञान कराया, जीने की कला और मानवीय व्यक्तित्व के चरम विकास का पथ प्रशस्त किया । वह विचार-वारा व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक हो सकती है । महावीर ने क्रिया-काण्ड और यज्ञों का विरोध किया । यह विचार धारा धार्मिक जड़ता एवं आर्थिक अपव्यय को रोक कर हमारे धार्मिक एवं प्रार्थिक क्षेत्रों को सुदृढ़ भूमि प्रदान कर सकती है । हमारी प्रजातांत्रिक पद्धति और समाजवादी समाज - रचना में अनेकान्त का चिन्तन आधार शिला है । व्रती जीवन ग्रहण कर प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रचार-विचारव्यवहार में आदर्श हो सकता है ।
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५. भगवान् महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण दिवस पर हमें निम्नलिखित दिशाओं में चिन्तन करना चाहिए
• चिन्तन के प्रति जितने हम सचेष्ट हैं, उतने ही साधना के प्रति हों । वैयक्तिक साधना का प्रश्रय कल्याणप्रद है ।
• स्वयं को खोना ही स्वयं को पाना है, इसलिए दारुण पीड़ा में भी अविचलित मुस्कराते रहो । उपसर्ग और कष्ट समताभाव से भेलो । समता और अडिगता के सामने 'क्लेश' द्रवित और विचलित हो जायेगे ।
"पतित एवं दरिद्र को गले लगायो | अपने व्यक्तित्व के पारस स्पर्श से 'हरिकेशी चांडाल' को भी स्वर्ण बना दो ।
• विप से अमृत की ओर प्रस्थान करो । 'चण्ड कौशिक' की विष दृष्टि तुम्हारे सुधोपम् वचनों को सुनकर प्रेममय हो जाएगी ।
• विरोधी के कथन में भी सत्य की संभावना स्वीकार करो ।
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धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है | ( कौन सा धर्म ? ) अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म । जिस मनुष्य का मन इस धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं ।
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