________________
३३४
अनेकांत को अपनाकर जहां व्यक्ति वैयक्तिक स्तर पर अपनी रागात्मकता को अधिक व्यापक और अपने दृष्टिकोण को अधिक उदार बना सकता है, वहां समाज या राष्ट्र की शासन व्यवस्था भी शांति और विश्व-बंधुत्व की राह पा सकती है। हमारी धर्म-निरपेक्ष समाजवादी व्यवस्था की कल्पना भी तभी चरितार्थ हो सकेगी जब म व्यष्टिगत विचारों को अनेकांतात्मक और व्यवहार को अहिंसात्मक बनाएंगे।
५. भगवान् महावीर के परिनिर्वाण-महोत्सव के अवसर पर उनके सन्देश को आदेश मानकर शिरोधार्य करने की, और तदनुसार आचरण करने की आवश्यकता है। समाज, राष्ट्र और विश्व की महनीय इकाई है मानव । यदि यह मानव अकेला ही, अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह के मार्ग पर चलने का संकल्प ले और चले तो वह अपना
और अपने साथ समाज, राष्ट्र और विश्व का भी कल्याण कर सकता है। . (७) डॉ० चैनसिंह बरला : . १. तत्कालीन युग में व्याप्त हिंसा के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना, मेरी दृष्टि में भगवान महावीर का प्रमुख उद्देश्य था । परन्तु महावीर की अहिंसा कायरों की अहिमा नहीं थी । जहां इसमें एक ओर हमें सहिष्णुता का सन्देश मिलता है, वहीं दूसरी ओर अन्याय के प्रति संघर्ष की प्रेरणा भी प्राप्त होती है । महावीर ने यह भी सन्देश दिया कि प्राणिमात्र को जीने का अधिकार है और कर्म ही मनुष्य को नियति का निर्धारण करता है। ईश्वर सृष्टि का न तो रचयिता है और न ही संचालक ! इन धारणाओं को प्रस्तुत करते हुए भगवान् महावीर ने धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड का प्रतिकार किया। यही नहीं, चतुर्विध संघ के महत्व को स्पष्ट करते हुए उन्होंने सामाजिक व्यवस्था एवं धर्म के बीच एक महत्वपूर्ण तारतम्य स्थापित किया । इस प्रकार उन्होंने धर्म गुरुओं का समाज पर प्रचलित एकाधिकार समाप्त करने का प्रयास किया।
२. मेरी समझ में तो ढाई हजार वर्ष के बाद भी हम भगवान् महावीर द्वारा प्रदत्त मूल्यों को व्यापक क्षेत्र में प्रतिष्ठापित करने में असफल रहे हैं । इस्लाम एवं ईसाई धर्मो का जिस प्रकार विस्तार हुमा, भगवान महावीर के मूल्यों को उस रूप में विस्तृत फलक नहीं दिया जा सका या जन साधारण को इन्हें समझने का अवसर नहीं मिल सका। - ३. पिछले दो सौ वर्षों में प्रौद्योगिक क्रांति एवं उससे सम्बद्ध इस आर्थिक विचारधारा ने कि मानवीय कल्याण की अभिवृद्धि हेतु भौतिक साधनों का संचय आवश्यक है, महावीर के सिद्धान्तों की आधुनिक संदर्भ में उपादेयता को काफी कम कर दिया । स्वयं भगवान् महावीर के अनुयायियों ने भी व्यावहारिक जीवन में भौतिक सुखों को सर्वोपरि मानना प्रारम्भ कर दिया । भौतिक साधनों की प्राप्ति एवं संचय हेतु अन्य लोगों के शोपण एवं उनके अधिकारों के हनन को भी अनुचित नहीं समझा गया । यदि उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भगवान महावीर के आदर्शों को उतारा होता तो वे अन्य लोगों के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर सकते थे। इससे एक व्यापक रूप में भगवान् महावीर के सिद्धान्तों को प्रतिष्ठापित करने में सहायता मिलती।