________________
परिचर्चा
૩૨૬
के उपदिष्ट तत्वों को ग्रुपने जीवन में पूर्णरूप से पालन करते हों पर समाज के बहुसंख्यक लोग उन तत्वों में निष्ठा रखकर अपने जीवन में अपनी क्षमता व शक्ति के अनुसार कम मात्रा में भी पालन करें तो भी उसकी जरूरत समभी जाय और उन्हें उत्साहित और प्रेरित किया जाय । समाज के समक्ष जो विश्व में जैन धर्म के प्रसार का महान् कार्य है, उसके लिए हम मिलकर काम करें। समाज में सभी लोग सभी विषयों में एकमत नहीं हो सकते पर कुछ विपय ऐसे हैं जिनमें मतभेद नहीं है, उन कामों को हम मिलकर करें । आपसी मतभेदों को लोगों के समक्ष रखकर अपने को उपहासास्पद बनाने की अपेक्षा जिसे जो ठीक लगे, वह करने में, लग जाय । जब हम मानते हैं कि जैन धर्म या महावीर के मार्ग में विश्व कल्याण की क्षमता है तो यह बात लोगों की समझ में आ जाये इस पद्धति से उसे उपस्थित करें | यह काम तभी किया जा सकेगा जब हम सब मिलकर काम का व्यवस्थित विभाजन कर योजना पूर्वक काम करेंगे, सम्पूर्ण शक्ति और साधनों का ठीक उपयोग करेंगे और उदार तथा व्यापक दृष्टिकोण रखेंगे ।
राष्ट्र के सम्मुख जो समस्याएं हैं, जो असन्तोष और वैचेनी है, उसे दूर करने के लिए भगवान् महावीर के परि-निर्वारण का उपयोग उनके कल्याणकारी तत्वों को राष्ट्रीय जीवन में उतारने में होना चाहिए। श्राज साम्प्रदायिकता उभर कर राष्ट्र को छिन्न-भिन्न बना रही है । उसका निवारण करने में भगवान् महावीर के उदात्त, व्यापक व असाम्प्रदायिक तत्त्वों का प्रसार होना चाहिए। भगवान् महावीर ने अपने धर्म में गांव, नगर, तथा राष्ट्रधर्म को स्थान दिया था । उन्होंने कोई विशिष्ट धर्म अपनाने की बात नहीं कही । हिंसा और संयम को अपनाने को कहा। किसी विशिष्ट व्यक्ति की पूजा या उपासना पर जोर न देकर जिन्होंने अपने गुरणों का विकास कर उच्च पद पाया हो, उसकी उपासना करने को कहा । उपासना में भी उपास्यदेव की कोरी भक्ति को स्थान न देकर गुणों को उपासना को श्रेयस्कर माना । अपना विकास दूसरे के विकास में बाघक नहीं, पर सहायक बनाने की बात कही । जिस मार्ग में सबके कल्याण की, सबके उदय की बात कही गई हो, ऐसे तत्वों को अपनाने से राष्ट्र की उन्नति होकर वे मानव मात्र के लिए उपयोगी हो सकते हैं । इसलिए महावीर के तत्वों का व्यापक प्रसार किया जाय । इससे राष्ट्र की समस्याएं सुलझे और ग्राज जो हिंसा, अत्याचार, असन्तोष, भ्रष्टाचार का बोलवाला है उस पर नियन्त्रण होगा तथा कानून, दण्ड द्वारा जो समस्याएं नहीं मुलगी उन्हें व्यक्तिगत संयम या स्वेच्छा नियन्त्ररण से, नैतिकता अपना कर सुलझाया जा सकेगा । जब राष्ट्र, भारतीय संस्कृति के इन महान् तत्वों को अपनायेगा तब प्रशान्त संसार जो भारत की ओर आशा से निहार रहा है उसकी अपेक्षा पूर्ण होगी । ग्राज विज्ञान ने नाश के साधनों का प्रचुर मात्रा में निर्माण कर संसार को विनाश के किनारे- लाकर रख - दिया है। संसार के विचारक, वैज्ञानिक, राजनेता सभी इससे चिन्तित हैं । इस स्थिति को यदि बदलना हो तो मित्रा हिंसा व अनेकान्त के समता और समन्वय के, दूसरा रास्ता नहीं है । जो पीड़ित और सावनरहित है उन्हें समृद्धवानों को स्वेच्छा से संयम और त्याग अपना कर, साधन उपलब्ध करा देना चाहिए । १९७१ में करीब २२०० वैज्ञानिकों ने तथा अभी इस वर्ष संसार के ३५६ प्रमुख वज्ञानिकों ने "ब्लू प्रिण्ट ग्राफ सरवायवल" नामक