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. -"परिचर्चा
अहिंसा की प्रतिष्ठापना हमें सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही दृष्टि से करनी होगी। मानव-जीवन में जो वैचारिक तथा मानसिक हिंसा ने अशांति और असन्तोप का निर्माण किया है, उसे दूर करने के लिए सूक्ष्म अहिंसा को जीवन में अपनाना होगा। इस दिशा में केवल साहित्य के द्वारा सूक्ष्म अहिंसा के हितकारी रूप को लोगों के समक्ष रखना ही काफी नहीं है। हमें अपने दैनिक जीवन में प्रयोगों द्वारा सिद्ध करना होगा कि व्यक्ति, समाज व राष्ट्र के हित के लिये यही मार्ग श्रेष्ठ है । भगवान् महावीर के सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र को अपनाये विना, केवल बोलने या लिखने से काम नहीं चलेगा । तत्त्व कितने भी श्रेष्ठ हों पर उनको जीवन में उतारे विना, उसके परिणामों को लोगों के समक्ष रखे बिना, उनका श्रेष्ठत्व जनता स्वीकारे यह सम्भव नहीं। जैन धर्म की प्रभावना बढ़े जुलूस, समारोह द्वारा करने की बात आज के बुद्धिवादी और वैज्ञानिक युग में अधिक उपयोगी नहीं होगी। सेवा के काम भी धर्म प्रभावना की दृष्टि से काफी नहीं होंगे । जीवन परिवर्तन से ही धर्म प्रभावना हो सकती है। हमारा जीवन शुद्ध हो, पवित्र हो, हम धर्मतत्वों को जीवन में अपना कर उसके परिणामों को जनता के समक्ष रख सकें, तभी जनता उस धर्म की ओर आकृष्ट हो सकती है।
जैन धर्म जैसे समता पर आधारित है वैसे ही उसका आधार व्यक्ति के जीवनपरिवर्तन पर है । भगवान् महावीर ने जो महत्वपूर्ण बात कही है कि तेरे भाग्य का विधाता तू ही है, तेरे सुख-दुःखों का कारण भी तू ही है, इस पर निष्ठा रख कर जीवन में होने वाले लाभों से, दूसरों को परिचित कराना होगा । आज का बुद्धिवादी, यह उत्तम तत्त्व है उसे ग्रहण करो, अथवा ऐसा हमारे पूज्य पुरुषों ने कहा है, इतना कहने भर से श्रद्धापूर्वक उसको मान ले यह सम्भव नहीं है। वह तो प्रयोग द्वारा आये परिणामों को देख कर धर्म को अपनाएगा । धर्म को लोगों को दिखाने के लिए नहीं पर वह व्यक्ति तथा समाज का हित करने वाला है, इस निष्ठा से अपनाने वाले धार्मिक ही नव समाज का निर्माण कर सकते हैं।
___ क्रांति की भापा भले ही कानों को सुनने में अच्छी लगती हो और क्रांति का मार्ग दूसरे अपनावें, यह अपेक्षा रख कर उपदेशक थोड़ा बहुत प्रभाव डाल भी दे तो भी जीवन में स्थायी परिवर्तन लाने में असमर्थ ही रहेंगे। जिन व्यक्तियों से समाज वना है उन व्यक्तियों में परिवर्तन हुए विना कुछ लोगों के जीवन में परिवर्तन आ भी जाय तो वह अधिक परिणामकारी नहीं होगा। भारत में सदा कुछ व्यक्तियों का जीवन स्तर बहुत ऊंचा रहा है और रहता आया है पर सामान्य जनता के जीवन में विशेष परिवर्तन हुआ दिखाई नहीं पड़ता। जो ऊंची स्थिति पर पहुंचे हैं, उनके विषय में जनता में आदर होता है, उनकी पूजा भी करते हैं और यह श्रद्धा भी आम जनता में पाई जाती है कि उनका उपास्यदेव, गुरु उसे कुछ दे देगा। पर उन्होंने जो कुछ कहा है वैसा जीवन विताने से हमारा कल्याण होगा, यह निष्ठा नहीं पाई जाती । भगवान् महावीर को प्रादर देना, उनके विपय में पूज्य बुद्धि रखना, उनके तत्त्वों या उपदेशों के प्रति निष्ठा रखना अच्छी बात है और केवल उतना कर देने मात्र को धर्म मानने से धर्म के पूरे लाभ से हम लाभान्वित नहीं