SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२२ परिचर्चा सभी महापुरुषों ने असमता को समाज का दूपरा मानकर समता प्रस्थापित करने के लिए प्रवल प्रयत्न किये । अर्थ को समता में बाधक मानकर परित्रह की निन्दा की फिर भी परिग्रह का समाज में वर्चस्व या प्रभाव बना रहा । कर्म सिद्धान्त मनुष्य को भलाई की योर प्रवृत्त करने के लिए था पर जब जनता में उस कम-सिद्धान्त का उपयोग शोपकों के प्रति तिरस्कार पैदा करने, तथा कोई अपने भाग्य से वनवान बना है और किसी की गरीबी का कारण इसके कोई पूर्व जन्म के कर्म हैं अतः यथा स्थिति में सन्तोष मानकर अन्याय को सहन करना चाहिए जैसी वृत्ति विकसित करने से हुया तव समता के ग्राज के अग्रदूतों को यह स्थिति वाधक लगी । फलस्वरूप उनका धर्म पर प्रहार करना स्वाभाविक था। उन्होंने वर्ग-विग्रह को समता प्रस्थापित करने के लिए आवश्यक मानकर वर्ग-विग्रह को उत्तेजना दी। जिससे संघर्ष हुया । परिणामतः लाखों नहीं, करोड़ों के प्राण जाकर भी समस्या सुलझ पाई हो ऐसा नहीं लगता । समता समय की मांग है, उसे टाला नहीं जा सकता । शोपा में पीड़ित जनता चुप रहे यह सम्भव नहीं । तत्र समता लाने का मार्ग निकालना आवश्यक मालूम दिया और वे प्रयत्न टाल्स्टाय, रस्किन, गांधी ने किये । धार्मिक महापुरुषों के सिद्धान्तों में जो विकृति आ गई थी उसे दूर करने और समाज को नई दिशा देने का प्रयास हुआ। समता लाने के लिए अपरिग्रह और संयम को आवश्यक मानकर स्वेच्छा से अपरिग्रह अपनाने को, दूसरों के साथ समता का व्यवहार करने की बात कह कर महावीर तथा अन्य महापुरुषों के जीवनमूल्यों की प्रतिष्ठापना का प्रयत्न गांधीजी द्वारा हुआ । भले ही परम्परावादी गांधीजी को महावीर का उपासक न मानें और गांधीजी ने वैसा दावा भी नहीं किया, पर गांधीजी ने भ० महावीर के समता के मिशन और उनके जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । उन्होंने सत्ता, कानून, दण्ड और नियन्त्रण के स्थान पर संयम, हृदय-परिवर्तन, परिग्रह-परिमाण, ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त, श्रम, ब्रह्मचर्य, तथा समता को जीवन में स्थान देकर समाज की समस्याओं को सुलझाने के प्रयत्न किये। अहिंसा को सर्वप्रथम स्थान देकर केवल ग्रन्थों, व्याख्यानों तथा श्रेष्ठत्व को पूजनीय मानने तक सीमित न रख कर वह जीवन में कैसे उतरे, अन्याय के परिमार्जन के लिए उनका उपयोग कैसे हो, इसके उन्होंने जो प्रयोग किए, वे मानव जाति के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जायेंगे। - अब तक सभी महापुरुपों ने अन्याय परिमार्जन के लिए हिंसा को आवश्यक माना था, पर गांधीजी ने उस दिशा में क्रांति कर सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन में अन्याय के प्रतिकार के लिये सत्याग्रह का शस्त्र देकर मानव जाति को नई दिशा दी। गांधीजी के इन प्रयत्नों को आगे बढ़ाना धार्मिकों का और खासकर महावीर की अहिंसा के उपासकों का प्रथम कर्तव्य हो जाता है। गांधीजी के आध्यात्मिक वारिस संत विनोवा ने जो नया मूत्र दिया है वह सत्याग्रही नहीं सत्याग्राही का है। वह भगवान महावीर के अनेक सिद्धान्त का परिपाक है । इसे विदेश के आइन्स्टीन आदि विचारक भी आवश्यक मानते हैं । पर भगवान् महावीर के सिद्धान्तों को केवल उच्च व उत्तम कहने मात्र से काम नहीं चलेगा, उन्हें अपने
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy