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भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य
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डाल सका था । जिस समय जैन धर्म का प्रसार अधिक था उस स्थिति की चर्चा करते हुए पुरातत्त्व के विद्वान पी० सी० राय चौधरी ने कहा है - यह धर्म धीरे-धीरे फैला, श्रेणिक, कूरिणक, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, खारवेल तथा अन्य कई राजाओंों ने जैन धर्म अपनाया । वह युग भारत के हिन्दू शासन का वैभवपूर्ण युग था ।
देश के सांस्कृतिक एवं नैतिक उत्थान में जैनाचार्यो का बड़ा योग रहा। वे गृहस्थों को व्रत के पालन में प्रेरणा देते रहे, दूसरी विचारधारा के साथ समन्वय करते रहे, देशकाल के अनुसार परम्परा में परिवर्तन को वे अवकाश देते रहे । जनता को रुचिकर हो, समझ में आ जाए ऐसी भाषा में उपदेश देते रहे । उनके उपदेशों का ही प्रभाव था कि जैनियों में प्रामाणिकता और समाज तथा राष्ट्रहित का ख्याल रहता था । जैनियों में अभयदान, शिक्षा चिकित्सा और अन्नदान देने की प्रवृत्ति प्राचीन काल में भी थी । अब तक वह बची रही है । हिंसा व सेवा की परम्परा आज भी बहुत कुछ मात्रा में जैनियों में पाई जाती है । पर जब से धर्म में बाह्य कर्मकाण्डों, विधि विधानों व दिखावे पर अधिक बल दिया जाने लगा, तबसे प्रभावशाली, समयज्ञ प्राचार्य की कमी होकर धर्म को संकुचित, साम्प्रदायिक रूप दिया जाकर व्यक्तिगत स्वार्थ बढ़ा और एकान्तिक निवृत जीवन पर अधिक बल दिया जाने लगा । जब आपसी प्रतिस्पर्धा और द्वेष बढ़ा तब भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्यों का ह्रास होकर समाज की अवनति हुई । उसका जगत्- कल्याणकारी रूप पूर्वजों के श्रेष्ठत्व के प्रशंसात्मक गीतों में आकर सिमट गया । घर में बैठ कर हम अपने आपको भले ही श्रेष्ठ समझते हों पर संसार की दृष्टि से हमारा धर्म नगण्य सा वन गया ।
३. इसमें सन्देह नहीं कि मार्क्स की समता की विचारधारा और विपमता के प्रति उसका सशक्त विरोध ग्राज के जनमानस पर व्यापक प्रभाव डाले हुए है । कोई भी व्यक्ति, जिसके हृदय में विशालता है, वह विषमता का समर्थन कर नहीं सकता । अनेक महापुरुषों, तीर्थकरों, ग्रवतारों तथा पैगम्बरों के धर्म के द्वारा सगता लाने के प्रयत्नों के वावजूद ममता श्रीर शोपण समाज में बहुत बड़े पैमाने पर चलता रहा है और उसका कारण उन्हें अर्थ ग्रौर राजनैतिक सत्ता दिखाई दी तब उस समता को मिटाने के लिए सत्ता बदल कर उन लोगों के हाथ में जो शोपित रहे हैं, सत्ता और नियन्त्रण द्वारा समता लाने का प्रयोग सूझना और उसके विक था । जनता में जागृति ग्राई, वे अपने अधिकारों और शक्ति को पहचान गये और जिनका गोपण होता था, जो पीड़ित थे तथा गरीब थे उन्होंने इस विचार प्रणाली को अपनाया और अनेक राष्ट्रों में समता लाने के लिए शासन पलट दिया । नई पद्धति से समता प्रस्थापित करने के प्रयोग हुए । इसमें संघर्ष होना स्वाभाविक था और हुआ । जिसमें लाखों नहीं पर करोड़ों के प्रारण गये । समता लाने व जनता में अपने तत्त्वों और शक्ति के प्रति जागृति लाने में जो-जो बाधाएं दिखाई दी उसे दूर हटाने का प्रयास हुआ । उसमें धर्म भी समता लाने में उन विचारकों को बाधक लगा । इसलिए परम्परागत धर्म तथा धार्मिक मान्यताओं पर तीव्र प्रहार हुए। उसे अफीम की गोली कहकर तिरस्कृत समभा गया और लोग धर्म के विरुद्ध आचरण करने में प्रगतिशीलता समझने लगे ।
देकर शासन, कानून, दण्ड लिए प्रयत्न होना स्वाभा