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________________ भापानों का प्रश्न : महावीर का दृष्टिकोण ३११ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश का प्रचार कम हुया दूसरी जनभाषाएं भारत के विभिन्न प्रदेशों में पनपने लगी, तब उन्होंने उनमें भी साहित्य रचना का काम प्रारंभ किया। सैंकड़ों साधुओं व विद्वानों ने गुजराती, हिन्दी, मराठी व राजस्थानी आदि में जैन साहित्य का अनुवाद करना शुरू कर दिया । राजस्थान, दिल्ली, गुजरात व मध्यप्रदेश के सैंकड़ों-शास्त्र भण्डार जैन व जैनेतर शास्त्रों से भरे पड़े हैं। भापा विज्ञान की दृष्टि से यह साहित्य भी बड़ा उपयोगी है। जैन दृष्टिकोण और काका साहेब कालेलकर : गांधी अनुयायी काका साहेब कालेलकर भारतवर्ष के सांस्कृतिक जगत् के महान् विद्वान् हैं । वे वहुत सी भापायों....अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, संस्कृत व हिन्दी के अधिकारी विद्वान् हैं । हिन्दुस्तानी के प्रवल समर्थक हैं । गुजराती कोश उनकी ही देखरेख में वना है। उन्होंने भाषाओं के प्रश्न की चर्चा के बीच इन पंक्तियों के लेखक से कहा था 'मुझे प्रसन्नता है कि जैनों को किसी भापा विशेप का कदाग्रह नहीं है। उन्होंने सभी भापायों को महान् योगदान दिया है ।' और उनके इस मत का समर्थन ऊपर की हर एक पंक्ति व भारतीय भाषाओं के रूप व साहित्य को देखने से होता है । वर्तमान में जैन विद्वानों का काम : पिछले पचास वर्षों में जैन समाज में भापानों व भाषा विज्ञान के क्षेत्र में कुछ काम करने का श्रेय पं० नाथूराम प्रेमी, डा० हीरालाल जैन, डा० ए. एन. उपाध्ये, डा० बनारसीदास जैन, पंडित जुगलकिशोर मुखतार, डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री, डा० प्रबोधचन्द्र, व 'जिनेन्द्र सिद्धान्त कोश' चार भाग-दो हजार पृष्ठ के निर्माता श्री जिनेन्द्र कुमार व स्व० विहारीलाल चैतन्य रचयिता 'जैन एन्साइक्लोपीडिया' आदि को है। 'राजेन्द्र अभिज्ञान कोश' भी एक महान् कोश है । अव तो बहुत से जैन विद्वान् डाक्टरेट के लिए इन विपयों को चुन रहे हैं । इन पंक्तियों के लेखक ने दस वर्प के तप समान घोर परिश्रम के बाद 'हिन्दी शब्द रचना' पुस्तक लिखी है । यह शब्द निर्माताओं, लेखकों, कवियों व पत्रकारों आदि के लिए बड़ी उपयोगी है। अब क्या करना है ? प्रश्न हो सकता है, कि वर्तमान में जैन विद्वानों, धनियों व साहित्यिक संस्थाओं का क्या कर्तव्य है ? यह काम इतना बड़ा है कि इसके लिए दस पांच विद्वान् तो क्या, सैंकड़ों विद्वान् भी कम हैं । यदि इस काम के महत्त्व को जैन विद्वान व दानी समझ लें, तो न विद्वानों की कमी रहे, न धन की। जिसको एक वार शब्द-अध्ययन, भापा रसास्वादन का चस्का लग जाए, उसे इस काम में समाधि या ब्रह्मलीनता का आनन्द मिलता है । घंटों इन पर सोचते रहें, चिन्तन करते रहें, तव कोई गुत्थी सुलझती है । इस काम में सबसे बड़ी आवश्यकता है वैर्य, खोजी की लगन, साम्प्रदायिकता व पंथवाद से ऊपर उठकर काम करने, व परिश्रम की आवश्यकता है । तव कहीं कुछ हो पाता है । नीचे कुछ आवश्यक काम सुझाये जा रहे हैं१. प्राचीन जैन कोशों व व्याकरणों के शुद्ध मूल व अनुवाद प्रकाशित किये जाएं ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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