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भगवान महावीर के पाँच नाम
और उनका प्रतीकार्य
• डॉ. नेमीचन्द जैन
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महावीर के पांच नाम:
एक तो हम तट पर पड़े हैं नाव में सवार होने का प्रयोजन से, दूसरे हम नौ पर चढ़ ही चुके हैं, तीसरे हमने नाव को दिशा की नन्गरः परनान के गाय हांग दिया चौथे नाव अपनी यात्रा पर मझधार से भागे निकालने लगी है, पांचवें हम गन्तार पर बहन चुके हैं और हमने अपना असवाव उतार दिया है। यह महावीर के पांच नामों की स्थिति है-वर्द्धमान, सन्मति, वीर, महावीर, अतिवीर या गति के सूत्रपात में पूर्व की उलटी गिनती है, णमोवकार मन्त्र को-साधु, उपाध्याय, प्राचार्य, अर्हन्त, सिद्ध।
भगवान महावीर के पांच नाम हैं। इनको लेकर गाई कहानियां हैं। पाया की अपनी सचाई होती है, निजी यथाय होता है । राजा सिद्धार्थ की मम्पदा बढ़ी, वैभव बढ़ा महावीर के जन्म से तो उन्होंने वर्द्धमान नाम दिया। संजय-विजय मुनियों का मन निःगंक हुया तो उन्होंने सन्मति नाम दिया । संगमदेव के फन पर वीरत्व प्रगट हुआ, उज्जयिनी के अतिमुक्तक श्मशान में महावीरत्व व्यक्त हुआ। स्थाणुरुद्र ने झुके हुए मस्तक ने उन्हें इसी नाम से सम्बोधित किया और जब उनकी वीरता लोकातीत हुई तो ? अतिवीरत्व का अभिधान उन्हें मिला किन्तु नामकरण की ये कहानियां बहुत स्थूल धरातल पर हैं। इनकी एक और गहराई है जिसे खोजने की एक खुशी है। स्थूलता मन को प्रसन्न करती है, सूक्ष्मता चित्त को आनन्दित करती है। यह भी सम्भव है कि इन नामों के पीछे भारतीय नामकरण की कोई प्रथा जीवित हो । नाम-विज्ञान अलग से विज्ञान है, और उसको अपनी गहराइयां और विस्तार हैं । यहां हम महावीर के इन पांचों नामों को एक भिन्न ही जलवायु में देखने का प्रयत्न करेंगे।
महावीर के पांच नामों के पीछे एक मर्म सुनायी देता है। इसे सुनना हर आदमी के लिए सम्भव नहीं है । इसे तलाशने और पकड़ने के लिए चित्त को विशुद्ध और अप्रमत्त, यानी पूरी तरह सावधान करने की जरूरत है। हम जानते हैं, महावीर का सम्पूर्ण जीवन सत्य और सम्यक्त्व की खोज पर समर्पित जीवन था सम्यक्त्व दर्शन का, ज्ञान का, चरित्र का । सम्यक्त्व की तलाश, यानी सांच की उत्तरोत्तर खोज । महावीर सत्यार्थी हैं। वे १. यह उल्लेख दिगम्बर परम्परा के अनुसार है। -सम्पादक