________________
मनोविज्ञान के परिवेक्ष्य में भगवान् महावीर का तत्वज्ञान
२३५
संक्रमण करने के लिए दान, परोपकार आदि पुण्य प्रकृतियों एवं विनय-वैय्याकृत्य (सेवाभाव) आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। .
भगवान् महावीर ने व्यक्त किया कि कर्म प्रकृतियों का संक्रमण सजातीय कर्म प्रकृतियों में ही होता है, विजातीय कर्म प्रकृतियों में नहीं। इस तथ्य की पुष्टि वर्तमान मनोविज्ञान करता है । उसका मानना कि मार्गान्तरीकरण या रूपान्तरण ' केवल सजातीय मानसिक भावों में ही होता है, यथा काम-भावना का प्रेम व वात्सल्य भाव में, विध्वंसक प्रकृति का रचनात्मक प्रवृत्ति में ही रूपान्तरण संभव है। ।
जैन दर्शन में संक्रमण प्रक्रिया पर वृहत् साहित्य वर्तमान काल में उपलब्ध है। यदि उसका मनोवैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया जाय तो यह ज्ञान विश्व में वर्तमान में फैली हुई बुराइयों को भलाई में बदलने के लिए अत्युपयोगी हो सकता है।
(७) उदीरणा करण—जिस प्रकार कच्चे आम को ग्राम के पत्ते व घास या अनाज में दाव दिया जाय तो वह समय से पूर्व ही पक जाता है, इसी प्रकार जो कर्म समय पाकर उदय मे आयेगे और अपना फल देकर नष्ट होंगे उन्हें प्रयत्नपूर्वक पहले भी उदय मे लाकर नष्ट किया जा सकता है इसे ही उदीरणा करण कहते हैं । मनोविज्ञान में इस प्रक्रिया को रेचन या वमन कहा जाता है। फ्रायड ने इसके लिए मनोविश्लेषण पद्धति का प्रयोग किया है। जिससे अंतःकरण के अज्ञात क्षेत्र में छिपी मानसिक ग्रंथियाँ, वासनाएं कामनाएं चेतन मन के सतह पर प्रकट (उदय) होकर नष्ट हो जाती है। पागलपन या हिस्टरिया के रोग दूर करने में वर्तमान में इस प्रणाली को प्रमुख स्थान दिया जा रहा है।
(८) उपशमनाकरण : जिस प्रकार भूमि में स्थित पौधा बरसात के जल बरसने से भूमि पर पपड़ी पाजाने से दव जाता है अथवा किसी पौधे को बरतन से ढकने या दवा देने से उसका बढ़ना उस समय के लिए रुक जाता है, इसी प्रकार कर्मो का ज्ञानबल से या संयम से दबा देने से उनका फल देना रुक जाता है, इसे उपशमनाकरण कहते है । इससे तात्कालिक शान्ति मिलती है जो आत्म शक्ति को प्रकट करने में सहायक होती है।
कर्म-बन्ध की प्रक्रिया:
भगवान् ने व्यक्त किया कि कर्म-बंध दो कारणों से होता है—योग और कपाय से। मन, वचन और काया की प्रवृत्ति (क्रिया) को योग कहा है और रागद्वेष के भावों को कषाय कहा है । योग से प्रकृति और प्रदेश बंध होता है तथा कषाय से स्थिति और अनुभाग बंध होता है। इसे समझने के लिए योग और कपाय में से प्रत्येक के दो रूप कर सकते है--(क) परिणाम या गुण और (ख) परिमाण या मात्रा ।
योग के परिणाम से प्रकृति बंध एवं योग के परिमाण से प्रदेश बंध होता है। कपाय के परिणाम से अनुभाग या रसवंध एवं कपाय के परिमाण से स्थितिबंध होता है।