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मनोवैज्ञानिक संदर्भ (१) (परिग्रह हेय-छोड़ने योग्य है) कब मैं थोड़े-बहुत परिग्रह का परित्याग करूंगा?
(२) कव मैं दस प्रकार के मुण्डन (पांचों इन्द्रियों के विषयों का परित्याग, क्रोध आदि चार कषायों के वाह्य कारणों को त्यागना और शृंगार के सिरमौर केशों का निवारण) से मुण्डित होकर, घर त्याग कर अनगार बनूगा ?
(३) कव मैं वाह्य-प्राभ्यन्तर तप के द्वारा काया और कपायों को कृश करके मरण के समय की अन्तिम क्रियाओं को करके, भात-पानी का प्रत्याख्यान करके और जीवन मरण की इच्छा से मुक्त होकर विचरण करूंगा ? १
दृढ़ आस्था, परिष्कृत प्रतीति और संशोधित रुचि ही शुद्ध लक्ष्य की ओर प्रेरित कर सकती है । यह पहले बन्ध हेतु मिथ्यात्व के उन्मूलन की बात हुई। असत्कार्यों से विरति :
दूसरा वन्ध हेतु है- अविरति (यात्म मलिनता के कारणों से लगाव-सलग्नता) पहले वन्ध हेतु का अभाव हो जाने पर दूसरा वन्ध हेतु अपनी सवलता खो देता है । अव दूसरे वन्ध हेतु के त्याग के विपय में विचार करना है ।
शिक्षा का एक कार्य है- मनुष्यों के सत्संकल्पों की शक्ति की वृद्धि करना, परन्तु आज की शिक्षा-पद्धति में ऐसी क्षमता नहीं है। आज की शिक्षा संकल्पवल को हीन करने और मनोवल को क्षीण करने में ही हिस्सा वंटा रही है । साधारण मनुष्यो का संकल्प वल दुर्बल होता है । दूसरी बात मनुष्य असत्कार्यों से विरत न होकर, उसके सम्मान और फल का भागी बनना चाहता है अतः वह द्विमुखी जीवन जीने लग जाता है, जिसे आज की भाषा में 'आदर्श के मुखौटे लगाना' कह सकते हैं । ऐसे द्विमुखी (वाहर कुछ और, तथा भीतर कुछ और) जीवन में संकल्प की दुर्बलता ही प्रमुख कारण है और दूसरा कारण है-यश मोह ।
इस अविरति के कारण ही युद्ध की ज्वालायें धधक उठती हैं, गृह-कलह फट पड़ता है, एक दूसरे को ठगा जाता है, हिंसा का ताण्डव-नृत्य होता है, एक दूसरे की हत्या होती है, माया-जाल बुने जाते हैं, सरगम की धुन में घृणा से संकुचित हो जाते हैं, गंध में मस्ती छा जाती है, या नथुने फूल जाते हैं, रस में रसना डूब जाती है और कोमल, कर्कश, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष आदि स्पों की माया में मन डूब जाता है। इस अविरति को संकल्प बल से ही जीता जा सकता है।
संकल्प हीनता को नष्ट करने के लिए भगवान् ने विरति (हिंसादि के प्रत्याख्यान) का मार्ग सुझाया । विरति के दो रूप हैं-देशतः और सर्वतः । देशतः विरति में अणुव्रतों, गुणवतों और शिक्षाव्रतों का विधान है और सर्वतः विरति में महाव्रतों का।२ अणुव्रतों
१. ठाण ३। २. उववाइय ०३४ ।