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भगवान् महावीर : जीवन, व्यक्तितत्व और विचार
उपसर्गों को झेलना पड़ा । फिर भी उन उपसर्गों से वे तिल मान भी विचलित नहीं हुए। क्योंकि वस्तुतः वे महावीर ही थे । भक से चल कर भगवान् महावीर राजगृह के निकटस्थ विपुलाचल पर पहुँचे । सुयोग्य गणधर या गणनायक के अभाव में उन्हें मौन धारण करना पड़ा । अंत में सर्व शास्त्र-पारंगत गौतम गोत्रीय इंद्रभूति की प्राप्ति से भगवान् का कल्याणकारी दिव्य उपदेश-प्रारम्भ हुा । महावीर जब तक सर्वज्ञ नहीं हुए थे तब तक अपने को उपदेश के अनधिकारी ही मानते थे।
भगवान् महावीर ने अपना उपदेश अर्घ मागधी नामक लोकभापा में ही दिया पंडितमान्य संस्कृत भापा में नहीं । इसका कारण यह था कि उनके उपदेश को शिक्षित-प्रशिक्षित, बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुप, निर्धन-धनिक आदि सभी आसानी से सुनें । इसी से महावीर का उपदेश शीघ्रातिशीघ्र सर्वत्र प्रसारित हुआ । महावीर की उपदेश सभा समवशरण के नाम से विख्यात थी। क्योंकि उसमें केवल मनुष्यों को ही नहीं, पशु-पक्षियों को भी भरण मिलती रही। उस सभा में इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह प्रमुख शिप्यों के नेतृत्व में मुनियों के गण संघटित हुए थे। महासती चंदना उनके साध्वीसंघ की अध्यक्षा नियुक्त रही। महावीर के संघ में वर्ण, जाति, लिंग आदि का कोई भेद नहीं था। विचार और सिद्धांत :
महावीर के अमूल्य विचार ढाई हजार वर्षों के दीर्घकाल से अक्षुण्ण चले आ रहे हैं । वास्तव में भगवान महावीर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व, काल की परिधि में नहीं बांधा जा सकता । उनका बहुमूल्य चिंतन देश और काल दोनों की सीमाओं से सर्वथा परे है। महावीर का सिद्धान्त देशविणेप, वर्गविशेप और युगविशेप का नहीं हो सकता । ढाई हजार वर्षों के पूर्व उसकी जितनी आवश्यकता थी आज भी उसकी उतनी ही आवश्यकता है । महावीर का तत्व सर्वथा अविरोध है। उनका धर्म वर्गविहीन मानवधर्म है । प्राणिमात्र का यह धर्म विश्व धर्म कहलाने के लिये सर्वथा योग्य है ।
___ महावीर का धर्म वर्गविशेप, राष्ट्रविशेप या कालविशेप का धर्म नहीं है। उनका प्राचारशास्त्र सभी देश और सभी कालों के लिये सर्वथा मान्य है। आज के उत्पीडित विश्व के लिये महावीर के द्वारा प्रतिपादित मार्ग सर्वथा अनुसरणीय है । वस्तुतः भगवान् महावीर सामान्य मानव न होकर महामानव थे। सामान्य मानव से महामानव पद पर आरूढ होना कोई खेल की बात नहीं है। महावीर की जीवनी से प्रत्येक व्यक्ति महामानव बनने की अमूल्य शिक्षा अवश्य पा सकता है। भगवान महावीर गृहस्थ तथा मुनि दोनों के मार्ग दर्शक थे । उनका जीवन शुद्ध स्फटिक मणि की तरह नितांत निर्मल रहा ।
भगवान महावीर ने २६ वर्ष ३ मास २४ दिन तक अंग, बंग, कलिंग आदि देशों में भ्रमण करके मानव जाति को मोक्ष का मार्ग बतलाया। अंत में कार्तिक कृष्णा अमावस्या के मंगलवार १५-१०-५२७ ई० पूर्व के ब्रह्म मुहूर्त में पावानगर में उनका पवित्र निर्वाण हुप्रा । उस समय अपार जनसमूह के साथ लिच्छवी, मल्ल, काशी, कोशल प्रादि नरेशों ने महावैभव से उनका निर्वाणोत्सव मनाया । उसी के उपलक्ष्य में उस रात्रि को दीपोत्सव भी