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आधुनिक विज्ञान और द्रव्य विषयक जैन धारणा
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द्रव्य की रूपांतरण-प्रक्रिया तथा भेद :
जैन-दर्शन की एक महत्त्वपूर्ण मान्यता यह है कि द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त है। यदि विश्लेषण करके देखा जाय तो द्रव्य की अवधारणा में एक नित्यता का भाव है जो न नष्ट होती है और न नई उत्पन्न होती है। उत्पाद और व्यय (विनाश) के बीच एक स्थिरता रहती है (या तुल्यभारिता Balance रहती है) जिसे एक पारिभाषिक शब्द ध्रौव्य के द्वारा इंगित किया गया है। मेरे विचार से ये सभी दशाएं द्रव्य की गतिशीलता और सृजनशीलता का प्रतिरूप है । विज्ञान के क्षेत्र में फ्रेड हायल ने पदार्थ का विश्लेपण करते हुए पृष्ठभूमि पदार्थ (Background Material) को प्रस्थापना की है जिससे पदार्थ उत्पन्न होता है और अंततः फिर उसी में विलय हो जाता है, यह क्रम निरन्तर चला करता है।' इस प्रकार सृजन और विलय के बीच समरसता स्थापित करने के लिए 'ध्रौव्य' (स्थिरता) की कल्पना की गई। त्रिमूर्ति को धारणा में भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश क्रमशः सृजन, स्थिरता (सामरस्य) और विलय (या प्रलय) के देवता हैं जो प्रत्यक्षः प्रकृति की तीन शक्तियों के प्रतीक हैं। द्रव्य का यह परिवर्तनशील तथा अनित्य रूप विज्ञान के द्वारा भी मान्य है जहां पर पदार्थ रूपांतरित होता है न कि नष्ट । विज्ञान तथा जेन दर्शन में द्रव्य का यह रूप समान है, पर एक विशेष प्रकार का अन्तर भी है। जैन-दर्शन में 'आत्मा' नामक प्रत्यय को भी द्रव्य माना गया है जिस प्रकार आकाश या स्पेस (आकाशास्तिकाय) काल या टाइम (कालास्तिकाय), पदार्थ तथा ऊर्जा (पुद्गलास्तिकाय) ग्रादि को । विज्ञान के क्षेत्र में द्रव्य को उतने व्यापक अर्थ में ग्रहण नहीं किया है जितना कि जैन-दर्शन में । परंतु आधुनिक विज्ञान की ओर विशेषकर भौतिकी गणित तथा रसायन की अनेक नवीन उपपत्तियों में पदार्थ के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तत्वों की ओर संकेत मिलता है जो उसके भावी रूप के प्रति एक दिशा प्रदान करता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक-दार्शनिक बट्रेन्ड रसेल ने पदार्थ के स्वरूप पर विचार करते हुए एक स्थान पर कहा है कि पदार्थ वह है जिसकी अोर मन सदैव गतिशील रहता है पर वह 'उस' तक कभी पहुँचता नहीं है । आधुनिक पदार्थ भौतिक नहीं है।
जैन दर्शन में पदार्थ के उपयुक्त स्वरूप से एक बात यह स्पष्ट होती है कि वहां पर द्रव्य एक ऐसा प्रत्यय है जो 'सत्ता सामान्य' का रूप है जिसके छह भेद किए गए हैंधर्मास्तिकाय से लेकर कालास्तिकाय तक जिसका संकेत ऊपर किया जा चुका है। जहां तक पुद्गल या पदार्थ का सम्बन्ध है, वह द्रव्य का एक विशिष्ट प्रकार है जिसका विश्लेषणात्मक चितन जैन आचार्यों ने किया है। परमाणुवाद का पूरा प्रसाद पुद्गल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण पर आधारित रहा है जो आधुनिक वैज्ञानिक परमाणुवाद के काफी निकट है।
१. द नेचर प्रॉफ यूनीवर्स, फ्रेड हॉयल, पृ० ४५ । . 'Matter is something in which the mind is being led, but which it
never reaches. Modern matter is not material.' उद्धृत फिनासिफिकल एसपेवट्रस ग्राफ माडर्न साईस', पृ० ८७, सं०-सी० ई० एम० जोड ।