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________________ २०२ वैज्ञानिक संदर्भ अनिवार्य कतिपय उपकरणों के अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु अपने अविकार में नहीं रखता। यहां तक कि अगले दिन के लिए भोजन भी अपने पास नहीं रख सकता। उसके लिए अपरिग्रह महाव्रत का पालन करना अनिवार्य है। गृहस्थवर्ग अपरिग्रही रहकर संसार-व्यवहार नहीं चला सकता और इस कारण उसके लिए पूर्ण परिग्रहत्याग का विधान नहीं किया गया है, उसे सर्वथा अनियन्त्रित भी नहीं छोड़ा गया है । गृहस्थ को श्रावक की कोटि में आने के लिए अपनी तृष्णा, ममता एवं लोभ-वृत्ति को सीमित करने के लिए परिग्रह का परिमारण कर लेना चाहिये । परिग्रह-परिमारण श्रावक के पांच मूल व्रतों में अन्यतम है। इस व्रत का समीचीन रूप से पालन करने के लिए श्रावक को दो व्रत और अंगीकार करने पड़ते हैं, जिसका भोगोपभोग परिमारण और अनर्थदंड-त्याग के नाम से गृहस्थ धर्म के प्रकरण में उल्लेख किया जा चुका है । परिमित परिग्रह का व्रत तभी ठीक तरह व्यवहार में आ सकता है, जब मनुष्य अपने भोग और उपयोग के योग्य पदार्थों की एक सीमा बना ले और साथ ही निरर्थक पदार्थो से अपना संबंध विच्छेद कर ले । इस प्रकार अपरिग्रह व्रत के लिए इन सहायक व्रतों की बड़ी आवश्यकता है। अर्थ तृष्णा की आग में मानव-जीवन भस्म न हो जाय, जीवन का एकमात्र लक्ष्य धन न बन जाय, जीवन-चक द्रव्य के इर्द-गिर्द ही न घूमता रहे, और जीवन की उच्चतर लक्ष्य ममत्व के अन्धकार में विलीन न हो जाय, इसके लिए अपरिग्रह का भाव जीवन में ग्राना ही चाहिए। यदि अपरिग्रह भाव जीवन में आ जाय, और सामूहिक रूप मे आ जाय तो अर्थवैषम्यजनित सामाजिक समस्याएं स्वतः हो समाप्त हो जाती हैं। उन्हें हल करने के लिए समाजवाद या साम्यवाद या अन्य किसी नवीनवाद की आवश्यकता ही नहीं रहती। जैन धर्म का यह अपरिग्रहवाद आधुनिक युग की ज्वलन्त समस्याओं का सुन्दर समाधान है, अतएव समाजशास्त्रियों के लिए अध्ययन करने योग्य है। इससे व्यक्ति का जीवन भी उच्च और प्रशस्त बनता है और साथ ही समाज की समस्याएं भी सुलझ जाती हैं। - MARH KHERI Im ल
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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