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' वैज्ञानिक संदर्भ
स्थावर जीव मानता है। श्री जगदीशचन्द्र वसु ने अपने वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा बनस्पति की सजीवता प्रमाणित करदी है । उसके पश्चात् विज्ञान, पृथ्वी की जीवत्वशक्ति को स्वीकार करने की ओर अग्रसर हो रहा है । विख्यात भूगर्भ वैज्ञानिक थी फ्रांसिस ने अपनी दशवर्षीय भूगर्भयात्रा के संस्मरण लिखते हुए Ten years under earth नामक पुस्तक में लिखा है कि
___"मैने अपनी इन विविध यात्राओं के दौरान में पृथ्वी के ऐसे-ऐसे स्वरूप देखे हैं, जो आधुनिक पदार्थ विनान से विरोधी थे। वे स्वरूप वर्तमान वैज्ञानिक सुनिश्चित नियमों द्वारा समझाये नही जा सकते ।"
इसके पश्चात् वे अपने हृदय के भाव को अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं
"तो प्राचीन विद्वानों ने पृथ्वी में जीवत्वशक्ति की जो कल्पना की थी, क्या वह सत्य है ?"
श्री फ्रांसिस भगर्भ सम्बन्धी अन्वेपण कर रहे हैं । एक दिन वैज्ञानिक जगत् पृथ्वी की सजीवता स्वीकृत कर लेगा, ऐसी आशा की जा सकती है। प्रात्मा की अनन्त ज्ञानशक्ति :
जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक प्रात्मा में अनन्त ज्ञानशक्ति विद्यमान है, परन्तु जब तक वह कर्म द्वारा ग्राच्छादित है, तब तक अपने असली स्वरूप में प्रकट नहीं हो पाती। जब कोई सवल प्रात्मा आवरणों को निःशेष कर देती है, तो भूत और भविष्य वर्तमान की भांति साफ दिखाई देने लगते हैं ।
सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा० जे. बी. राइन ने अन्वेषण करके अनेक आश्चर्यजनक तथ्य घोपित किये हैं। उन तथ्यों को भौतिकवाद के पक्षपाती वैज्ञानिक स्वीकार करने में हिचक रहे हैं, मगर उन्हें अमान्य भी नहीं कर सकते हैं । एक दिन वे तथ्य अन्तिम रूप से स्वीकार किये जायेंगे, और उस दिन विज्ञान प्रात्मा तथा सम्पूर्ण ज्ञान (केवलज्ञान) की जैन मान्यता पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाएगा।
ध्यान और योग जन-साधना के प्रधान अङ्ग हैं । जैन धर्म की मान्यता के अनुसार ध्यान और योग के द्वारा विस्मयजनक आध्यात्मिक शक्तियों की अभिव्यक्ति की जा सकती है । अाधुनिक विज्ञान भी इस मान्यता को स्वीकार करने के लिए अग्रसर हुया है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध विद्वान् डा० ग्रेवाल्टर की The Leaving Brain नामक पुस्तक पठनीय है। ज्ञान को विषाक्त बनने से रोकने की कला :
___ दर्शन शास्त्र का उद्देश्य शुद्ध बोध की उपलब्धि और उसके द्वारा समस्त वन्धनों से विमुक्ति पाना है। मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य मुक्ति है, क्योंकि मुक्ति विना शाश्वत शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती । बोध मुक्ति का सावन है, मगर यह भी स्मरणीय है कि वह दुधारी खड़ग है । ज्ञान के साथ अगर नम्रता है, उदारता है, निष्पक्षता है, सात्विक जिज्ञासा है, सहिप्रगुता है, तो ही ज्ञान अात्मविकास का साधन बनता है । इसके विपरीत