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________________ १९६ वैज्ञानिक संदर्भ कि सृष्टि का विधिवत निर्माण हुआ है या नहीं ? अगर निर्माण हुआ है, तो इसका निर्माता कौन है ? यदि निर्माण नहीं हुआ तो सृष्टि कहां से पाई ? सृष्टि निर्माण से पहले क्या स्थिति थी ? ___ इन प्रश्नों पर दार्शनिक कभी सहमत नहीं हो सके । एक कहता है......."सृष्टि देव के द्वारा उत्पन्न की गई है ।" तो दूसरा कहता है....... "ब्रह्म या ब्रह्मा ने इसकी रचना की है ।" किसी का मत है कि ईश्वर इसका निर्माता है, और किसी के मतानुसार प्रकृति से सृष्टि बनी है । कोई स्वयंभू को सृष्टि का कर्ता कहते हैं । कोई अण्डे से उसकी उत्पत्ति बतलाते हैं । उनकी मान्यता के अनुसार यह चराचर विश्व, अण्डे से उत्पन्न हुमा है । जब संसार में कोई भी वस्तु नहीं थी तब ब्रह्मा ने पानी में एक अण्डा उत्पन्न किया बढ़ते-बढ़ते वह वीच में से फट गया। उसके दो भागों में से एक से ऊर्ध्व-लोक की और दूसरे से अधोलोक की उत्पत्ति हुई। __ कोई स्वभाव से सृष्टि की उत्पत्ति स्वीकार करते हैं, कोई काल से, कोई नियति से और कोई यदृच्छा से । सृष्टि से पहले कौन-सा तत्त्व था, इस विषय में भी विभिन्न दर्शनों में मतैक्य नहीं हैं । किसी के मन्तव्य के अनुसार सृष्टि से पहले जगत् असत् था......."असद्धा इदमन आसीत्" दूसरे कहते हैं-"सदैव सोम्येदमग्न आसीत्" अर्थात हे सौम्य ! जगत् सृष्टि पहले सत् था । किसी का कहना है-"आकाशः परायणम्" अर्थात् सृष्टि से पूर्व अाकाश-तत्त्व विद्यमान था । कोई इस मन्तव्य के विरुद्ध कहते हैं:-"नवेह किन्चनान प्रासीत्" । 'मृत्युनैवेदमावृतमासीत्' अर्थात् सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था, सभी कुछ मृत्यु से व्याप्त था, अर्थात् प्रलय के समय नष्ट हो चुका था। अभिप्राय यह है कि जैसे सृष्टि-रचना के सम्बन्ध में अनेक मान्यताएं है, उसी प्रकार सृष्टिपूर्व की स्थिति के सम्बन्ध में भी परस्पर विरुद्ध मन्तव्य हमारे समक्ष उपस्थित हैं। सृष्टि प्रक्रिया सम्बन्धी इन परस्पर विरुद्ध मन्तव्यों की आलोचना जैन दर्शन में विस्तारपूर्वक की गयी है । उसे यहां प्रस्तुत करने का अवकाश नहीं, तथापि यह समझने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती कि इन कल्पनाओं के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यदि सृष्टि से पूर्व जगत् सत् मान लिया जाय तो उसके नये सिरे से निर्माण का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । जो सत् है वह तो है हो । यदि सृष्टि से पूर्व जगत् एकान्त असत् था और असत् से जगत् की उत्पत्ति मानी जाये तो शून्य से वस्तु का प्रादुर्भाव स्वीकार करना पड़ेगा, जो तर्क और बुद्धि से असंगत है । इसी प्रकार सृष्टिनिर्माण प्रक्रिया भी तर्कसंगत नहीं है। जैन धर्म की मान्यता : इस विषय में जैन धर्म की मान्यता ध्यान देने योग्य है । जैन धर्म के अनुसार जड़ और चेतन का समूह यह लोक सामान्य रूप से नित्य और विशेष रूप से अनित्य है । जड़
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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