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दार्शनिक संदर्भ
अपनी ही गहराइयों में अपने ही जीवन और सम्पूर्ण यथार्थ के आधार को प्राप्त कर लेती है उन समय उसकी अनुभूति और आनन्द को किसी भी भाषा में व्यक्त करना असंभव है ।
'प्राणीमात्र मे प्रेम करो' ऐसा कहना और सुनना सुन्दर प्रतीत होता है, किन्तु प्रेम करने की क्षमता अर्जित करना दुष्कर है । ग्राध्यात्मिक जीवन का विकास ही वह बल हैं जो प्रेम करने की क्षमता प्राप्त करा सकता है । सत्य और ईमानदारी, पवित्रता और गंभीरता, दया और क्षमा जैसे गुण यात्मिक वोध से ही उत्पन्न होते हैं । श्रात्म-केन्द्रीयता से शांति और जीवन सौख्य की प्राप्ति होती है, 'ग्रात्मवत् सर्वभूतेषु' की भावना का सही रूप में प्रदर्शन होता है | जब तक हमारी वासनाओं और अभिलापात्रों का हम पर शासन है, तब तक हम पड़ौसी ही नहीं प्राणीमात्र का अपमान करते रहेंगे, उन्हें शांति में नहीं रहने देंगे और अपनी हिंसात्मक प्रवृत्तियों, लोलुपता एवं ईर्ष्या आदि से ग्रस्त रहेंगे एवं इनमे परिपूर्ण संस्थाओं और समाजों का निर्माण करते रहेंगे ।
हम जिस संसार में रहते हैं और जिस युग के उत्तराधिकारी हैं, उसमें तीव्र वैमनस्य और उथल-पुथल है । हमने अन्यायपूर्ण व्यवहार किया है और कर रहे हैं । बुद्ध का यही कारण है और उसमे उत्पन्न अराजकता का यही केन्द्र विन्दु है | लेकिन इससे मानव शिक्षा ग्रहण नहीं कर सका । यंत्रणापूर्ण स्थिति से निकल जाने पर अपने अन्त में झांकने का प्रयास करना चाहिये था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ । इसके विपरीत भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों से उन ग्राव्यात्मिक मूल्यों पर ध्यान देना बन्द कर दिया, जिनके द्वारा मानव की प्रगति का मूल्यांकन किया जा सकता था ।
यह ठीक है कि भौतिक विज्ञान की उपलब्धियां हमारे स्वास्थ्य, समृद्धि, अवकाश या जीवन की अभिवृद्धि में सहायक हो सकती हैं, लेकिन हम उनका उपयोग क्या करते हैं ? कभी-कभी हम कहते हैं कि ग्ररणुवम या हाइड्रोजन बम शांति स्थापना और युद्धों को रोकने में समर्थ है | लेकिन गंभीरता से विचार करे तो वे मानव के लिये एक चुनौती है, उसके विवेक की कसौटी है, ग्राव्यात्मिक विकास की पुकार है । समस्या का समाधान घातक शस्त्र नहीं, वह तो मानसिक और आध्यात्मिक मूल्यों के एकीकरण से संभव है । यात्मिक मूल्यों और मस्तिष्क की उपलब्धियों के बीच तनाव कम करने के प्रयास में ही हमें मानवीय ग्रात्मा के आदर्श के दर्शन होंगे ।
युद्ध की अनुपस्थिति अथवा युद्धों को रोक देना ही शान्ति नहीं है, किंतु यह एक मुदृढ़ वन्बुत्वभावना के विकास पर निर्भर है । ग्रन्य लोगों के विचारों और मूल्यों को ईमानदारी से समझने के प्रयास से संभव है और इसके लिये आवश्यक है कि हम आव्यात्मिक महत्ता को अपने आप में प्रतिष्ठित करें । ऋति समीपी ऐक्य को, विचारों के मिलन की, भावनाओं के संयोग की प्रावश्यकता है । जब मानव के चान्तरिक जीवन की महत्ता का ज्ञान बढ़ता है तब भौतिक युगों और समृद्धि का महत्व कम हो जाता है और उस स्थिति में युद्धों की सम्भावना नहीं रह सकती है ।
अन्तर्दृष्टि विकसित करें :
आत्मिक जगत् में रहने का अर्थ यह है कि हम इस संसार की वास्तविकताओं के