________________
महावीर की दृष्टि में मानव-व्यक्तित्व के विकास की संभावनाएं
१५६
विस्तार, लोक-ज्ञान और लोकोपलब्धि की बातें नक्कारखाने में तृती की आवाज लगती हैं । महावीर की दृष्टि तो स्पष्ट है, ग्रात्म-ज्ञान और लोक-कल्याण के समानान्तर पथ में से किसी पथ का भी पथिक निर्जरा और संवर के डग भरता 'निर्ग्रन्थ' बन सकता है, जो व्यक्तित्व के परम विकसित रूप का प्रतीक है । इस पथ का पथिक केवल व्यक्ति ही नहीं कोई भी समाज, कोई भी राष्ट्र और राष्ट्रों का विश्व-संघ भी हो सकता है । हो सकता है, संभावनाएं तो हैं, परन्तु विश्व मानव कब इस पथ पर चल कर विश्व मानवता को प्राप्त कर सकेगा, यह तो अभी भी प्रतीक्षा का विषय बना हुआ है । व्यक्तित्व विकास के लिए महावीर का निर्दिष्ट पथ तो स्पष्ट है, पर उस पर सच्चे पथिक की अव भी प्रतीक्षा हो रही है जो अपने पीछे समस्त मानवों को ले चले । संभावनाओं की अनन्तता, पर एक की, केवल एक 'निर्ग्रन्थ' की नेतृत्व शक्ति हृदय ग्रन्थियों के भेदन के पथ पर आगे बढ़ा सके, महावीर की अमरवाणी जिसके मुख से निस्सृत हो इस देश सहित विश्व को अपने समग्र व्यक्तित्व के विकास के लिए प्रेरित कर सके उसकी तो अव भी प्रतीक्षा है |
....