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उनके जीवन दर्शन की यही पृष्ठभूमि उन्हें क्रांति की प्रोर गई। उन्होंने जीवन के विभिन्न परिपार्श्वो को जड़, गतिहीन और निष्क्रिय देखा । वे सबमें चेतनता, गतिशीलता और पुरुषार्थ की भावना भरना चाहते थे । धार्मिक, सामाजिक, ग्रार्थिक और वौद्धिक क्षेत्र में उन्होंने जो क्रांति की, उसका यही दर्शन था ।
धार्मिक क्रान्ति :
महावीर ने देखा कि धर्म को लोग उपासना की नहीं, प्रदर्शन की वस्तु समझने लगे हैं | उसके लिए मन के विकारों और विभावों का त्याग आवश्यक नहीं रहा, आवश्यक रहा यज्ञ में भौतिक सामग्री की ग्राहुति देना, यहाँ तक कि पशुओंों का वलिदान करना । धर्म अपने स्वभाव को भूल कर एकदम क्रियाकांड वन गया था । उसका सामान्यीकृत रूप विकृत होकर विशेषाधिकार के कठघरे में वन्द हो गया था । ईश्वर की उपासना सभी मुक्त हृदय से नहीं कर सकते थे । उस पर एक वर्ग विशेष का एकाधिपत्य सा हो गया था । उसकी दृष्टि सूक्ष्म से स्थूल और अन्तर से वाह्य हो गई थी । इस विषम स्थिति को चुनौती दिये विना आगे बढ़ना दुष्कर था । अतः भगवान् महावीर ने प्रचलित धर्म और उपासना पद्धति का तीव्र शब्दों में खंडन किया और बताया कि ईश्वरत्व को प्राप्त करने के साधनों पर किसी वर्ग विशेष या व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है। वह तो स्वयं में स्वतंत्र, मुक्त, निर्लेप और निर्विकार है । उसे हर व्यक्ति, चाहे वह किसी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग का हो - मन की शुद्धता और ग्राचरण की पवित्रता के बल पर प्राप्त कर सकता है । इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने कपायों - क्रोध, मान, माया, लोभ - को त्याग दे । -
धर्म के क्षेत्र में उस समय उच्छ ङ्खलता फैल गई थी। हर प्रमुख सावक अपने को सर्वेसर्वा मान कर चल रहा था । उपासक की स्वतंत्र चेतना का कोई महत्त्व नहीं रह गया था । महावीर ने ईश्वर को इतना व्यापक बना दिया कि कोई भी ग्रात्म-सावक ईश्वर को प्राप्त ही नहीं करे वरन् स्वयं ही ईश्वर वन जाय । इस भावना ने ग्रसहाय, निष्क्रिय जनता के हृदय में शक्ति, ग्रात्म-विश्वास और आत्म बल का तेज भरा । वह सारे आवरणों को भेद कर, एक वारगी उठ खड़ी हुई। अब उसे ईश्वर प्राप्ति के लिए परमुखापेक्षी बन कर नहीं रहना पड़ा । उसे लगा कि साधक भी वही है और साध्य भी वही है । ज्यों-ज्यों साधक, तप, संयम और ग्रहिंसा को आत्मसात् करता जायेगा त्यों-त्यों वह साध्य के रूप में परिवर्तित होता जायगा । इस प्रकार धर्म के क्षेत्र से दलालों और मध्यस्थों को बाहर निकाल कर, महावीर ने सही उपासना पद्धति का सूत्रपात किया ।
सामाजिक क्रान्ति :
महावीर यह अच्छी तरह जानते थे कि धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप जो नयी जीवन-दृष्टि मिलेगी उसका क्रियान्वयन करने के लिए समाज में प्रचलित रूढ़ मूल्यों को भी बदलना पड़ेगा । इसी सन्दर्भ में महावीर ने सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया । महावीर