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क्रान्ति-पुरुष महावीर :
वर्षमान महावीर क्रांतिकारी व्यक्तित्व लेकर प्रकट हुए। उनमें स्वस्थ समाजनिर्माण और आदर्श व्यक्ति-निर्माण की तड़प थी। यद्यपि स्वयं उनके लिये समस्त ऐश्वर्य
और वैलासिक उपादान प्रस्तुत थे तथापि उनका मन उनमें नहीं लगा । वे जिस विन्दु पर व्यक्ति और समाज को ले जाना चाहते थे, उसके अनुकूल परिस्थितियां उस समय न थीं। धार्मिक जड़ता और अन्ध श्रद्धा ने सवको पुरुषार्थ रहित बना रखा था, आर्थिक विपमता अपने पूरे उभार पर थी। जाति-भेद और सामाजिक वैषम्य समाज-देह में घाव बन चुके थे। गतानुगतिकता का छोर पकड़ कर ही सभी चले जा रहे थे । इस विषम और चेतना रहित परिवेश में महावीर का दायित्व महान् था। राजघराने में जन्म लेकर भी उन्होंने अपने समग्न दायित्व को समझा । दूसरों के प्रति सहानुभूति और सदाशयता के भाव उनमें जगे और एक क्रान्तदर्शी व्यक्तित्व के रूप में वे सामने आये, जिसने सवको जागृत कर दिया, अपने-अपने कर्तव्यों का भान करा दिया और व्यक्ति तथा समाज को भूलभुलैया से बाहर निकाल कर सही दिशा-निर्देश ही नहीं किया वरन् उस रास्ते का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया।
क्रान्ति की पृष्ठभूमि :
परिवेश के विभिन्न सूत्रों को वही व्यक्ति पकड़ सकता है जो सूक्ष्म द्रप्टा हो; जिसकी वृत्ति निर्मल, स्वार्थ रहित और सम्पूर्ण मानवता के हितों की संवाहिका हो । महावीर ने भौतिक ऐश्वर्य की चरम सीमा को स्पर्श किया था पर एक विचित्र प्रकार की रिक्तता का अनुभव वे वरावर करते रहे, जिसकी पूर्ति किसी वाह्य साधना से सम्भव न थी। वह आन्तरिक चेतना और मानसिक तटस्थता से ही पाटी जा सकती थी। इसी रिक्तता को पाटने के लिए उन्होंने घर-बार छोड़ दिया, राज-वैभव को लात मार दी और बन गये अटल वैरागी, महान् त्यागी, एकदम अपरिग्रही, निस्पृही।