________________
२२
गुट निरपेक्षता का सिद्धान्त और महावीर का अनेकांत दृष्टिकोण
• डॉ० सुभाष मिश्र
श्रनेकान्त दृष्टि : सत्य और श्रहिंसा का परिणाम : महात्मा गांधी ने कहा है कि 'मेरा अनुभव है कि मैं अपनी दृष्टि से सदा सत्य ही होता हूं, किन्तु मेरे ईमानदार ग्रालोचक तब भी मुझ में गलती देखते हैं । पहले मैं अपने को सही और उनको अज्ञानी मान लेता था, किन्तु अब मैं मानता हूं कि अपनी प्रपनी जगह हम दोनों ठीक हैं, कई अन्धों ने हाथी को अलग-अलग टटोलकर उसका जो वर्णन किया था वह दृष्टान्त अनेकान्तवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है । इसी सिद्धान्त ने मुझे यह बतलाया कि मुसलमानों की जांच मुस्लिम दृष्टिकोण से तथा ईसाई की परीक्षा ईसाई दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी ज्ञान में हैं, ज मैं विरोधियों को प्यार करता हूं क्योंकि श्रव में अपने विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूँ | मेरा अनेकान्तवाद सत्य और अहिमा इन युगल सिद्धान्तों का ही परिगाम है ।"
गांधी और अनेकान्त दृष्टि :
भगवान् महावीर की देन स्वरूप अनेकान्तवादी चिन्तन, जैन एवं जैनेतर भारतीय दर्शनों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, अनेक रूपों में समाया हुआ है, किन्तु दर्शनगत अनेकान्तवादी विचारणा केवल चिन्तन के रूप में ही रही है । भगवान् महावीर के काल में धर्म के क्षेत्र में उसकी एक व्यावहारिक भूमिका भी थी, तथापि उसका सैद्धान्तिक रूप ही बारवार सामने आया है । बीसवीं शताब्दी के नवजागरण काल में महात्मा गांधी में ग्राकर वह अनेकान्तवाद नवजीवन प्राप्त करता है, उसकी सामाजिक और राजनैतिक जीवन में व्यावहारिक उपयोगिता प्रमाणित हुई है । यह कहना असत्य न होगा कि महात्मा गांधी का सम्पूर्ण चिन्तन और कार्य अनेकान्तवाद की ही तरह सत्य और अहिंसा पर आधारित है । अतः यदि भारत के पुनरुत्थान, पुनर्गठन, पुनर्जागरण एवं नई सांस्कृतिक चेतना में महात्मा गांधी कारण या सहयोगी हैं तो प्रकारान्तर से महावीर के अनेकान्तवाद को भी इसका श्रेय है ।
अनाग्रही दृष्टिकोण की श्रावश्यकता :
आज का विश्व इतना जटिल, विभिन्न गुटों में विभाजित, संघर्षशील तथा परि