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समाजवादी अर्थ-व्यवस्था और महावीर
• श्री शान्तिचन्द्र मेहता
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समग्र जीवन के प्रवाह में जो संस्कार ढलते हैं उनसे सभ्यता एवं संस्कृति का निर्माण होता है और दूरदर्शी ज्ञान-दृष्टि से दर्शन जन्म लेता है । दार्शनिक धरातल जिस संस्कृति को उपलब्ध होता है, वह संस्कृति दीर्घजीवी बनती है। पीढ़ियां जन्म लेती हैं
और काल के गाल में समाती रहती हैं, किन्तु श्रेष्ठ दर्शन एवं उत्कृष्ट संस्कृति का जीवनकाल कई वार युगों तक चलता रहता है । यह उस महापुरुप की युग प्रवर्तक शक्ति का द्योतक होता है, जो अपने मौलिक चिन्तन के आधार पर नवीन दर्शन को जन्म देता है और प्रवाहित होने वाली संस्कृति को नया मोड़ प्रदान करता है। महावीर ऐसे ही युगप्रवर्तक महापुरुष थे। भारत की दार्शनिक त्रिधारा :
भारत भूमि की ज्ञान एवं कर्म गरिमा इतनी समुन्नत रही है कि यहां दार्शनिकों चिन्तकों एवं सावकों का प्रभाव सदैव सर्वोपरि रहा । मौलिक विचारों की ज्ञान-गंगा यहीं से उद्गमित होकर समस्त संसार में बहती रही। प्राचीन भारत की जिस दार्शनिक त्रिधारा का उल्लेख किया जाता है, उनमें वेदान्त, जैन और वौद्ध दर्शन की धाराओं का समावेश माना जाता है । इस विधारा में मानव-जीवन के आधारभूत दर्शन के तीन बिन्दु तीन रूपों में दिखाई देते हैं।
___ यों तो जैन धर्म अनादिकालीन माना गया है तथा इस काल खंड में इसके आदिप्रवर्तक ऋषभदेव माने गये हैं, किन्तु वर्तमान जैन दर्शन के प्रवर्तक महावीर ही हैं जो तीर्थंकरों की श्रृंखला में चौवीसवें तीर्थंकर हैं। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व उन्होंने जो दर्शन दिया, उसी के प्राचीन एवं अर्वाचीन महत्त्व का उनकी २५वीं जन्म शती पर मूल्यांकन करने का हम यहां छोटा सा प्रयास कर रहे हैं । यह मूल्यांकन अाधुनिक समाजवादी अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से होगा। त्रिधारा के वे तीन बिन्दु :
प्राचीन दार्शनिक विचार धारा में मनुष्य से ऊपर ईश्वर, प्रकृति या अन्य शक्ति का उल्लेख किया जाता है । मनुष्य के कर्तृत्व को सर्वोच्चता धीरे-धीरे बाद में मिलने लगी है वरना वेदान्त दर्शन के अनुसार सृष्टि का कर्ता भी ईश्वर को माना गया है। ईश्वर का