________________
सामाजिक संदर्भ
उसे नैतिकता की आधार भूत शिला माना है । भगवान् महावीर ने कहा है कि गुण पर्याय वाले चेतन-अचेतन के क्रिया कलापयुक्त यह विश्व अनादि से है और रहेगा । इसका निर्माता कोई नहीं है । भगवान् महावीर की यह विचारधारा वैज्ञानिक पद्धति के अधिक अनुकूल और बुद्धिवादी लोगों के लिए आकर्षक है । प्रत्येक प्राणी की आत्मा हाड़-मांस के नश्वर शरीर तथा जड़ जगत् से भिन्न एक अविनाशी तत्त्व है जो शरीर के नष्ट हो जाने के वाद किसी भी देश, प्रांत, कुल और योनि में जन्म धारण कर सकता है अत: सवको अपना कुटुम्बी मानकर किसी को दुःख मत पहुँचानो । ऐसा कोई कार्य न करो जो अन्य जीवों के हित का विरोधी हो ।
इस समय भी एक ही मार्क्सवादी विचारधारा वाले होते हुए भी रूस तथा चीन वाले एक दूसरे को दुश्मन समझते हैं । राष्ट्रवाद और जातिवाद के विप से संसार में संघर्ष का वातावरण बना हुआ है और धनवान तथा साधन सम्पन्न लोगों को अधिकांश अपने ही भोगविलास की चिंता है, चाहे साधनहीन लोगों को खाने को अनाज भी न मिले । इसका कारण यही है कि वे अपने वर्तमान शरीर की दृष्टि से ही सोचते हैं । अपनी आत्मा की दृष्टि से यह नहीं सोचते कि संभव है मरने के बाद उनका स्वयं का उसी देश, जाति, कुल व योनि में जन्म हो जावे कि जिसे वे इस समय अपना दुश्मन समझते हैं । इस प्रकार भगवान महावीर ने आत्मा की नित्यता और विश्ववन्धुत्व की भावना को महत्त्व देते हुए संसार में शांति स्थापना के लिग अहिंसा के पालन का उपदेश दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि सुख का मूल स्रोत तुम्हारी आत्मा के अंदर है, वह पराश्रित नहीं है, कहीं बाहर से नहीं आता । वाह्य पदार्थों से प्राप्त सुख क्षणिक और परिणाम में दुखदायी होता है तथा उनके परिग्रह अर्थात् उनके मोह, ममत्व व उनके स्वामित्व की भावना से, दुःख ही मिलता है । अतः यदि सुखी रहना चाहते हो तो संयम से रहो, अपने जीवन निर्वाह के लिए कम से कम आवश्यकताएं रक्खो और भोगोपभोग की वस्तुओं और धन का संग्रह मत करो। इस प्रकार भगवान महावीर का उपदेश व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने का विरोधी है। जहां उनके द्वारा निर्दिष्ट साधु की चर्या उस निप्परिग्रही जीवन की आदर्श स्थिति है वहां गृहस्थ के लिए भी कम से कम परिग्रह रखने का उपदेश है और कहा है कि बहुत परिग्रह रखने वाला व्यक्ति मरने पर नरकगति में जाता है । परन्तु निष्परिग्रही या अल्पपरिग्रही जीवन उसी व्यक्ति का हो सकता है कि जिसकी आवश्यकताएं कम-से-कम हों अर्थात् जो संयमी हो। अतः भगवान महावीर ने सुख-गांति के लिए संयम और अपरिग्रह दोनों को आवश्यक माना है ।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी, मनुष्य मात्र में भाईचारे, विश्व बंधुत्व के व्यवहार के लिए भी अपरिग्रह और संयम आवश्यक है । कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन के महासंचालक ने कहा था कि पृथ्वी पर जो अनाज पैदा होता है उसके लगभग तीन चौथाई भाग को तो विश्व की जन संख्या के एक तिहाई साधन संपन्न लोग ही खा जाते हैं । शेप दो तिहाई या आधे लोग भूखे रहते हैं या उन्हें ऐसा भोजन मिलता है जिससे ठीक पोपण नहीं मिलता । परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष ४ करोड़ व्यक्ति तो भूख से