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________________ ६४] भगवान् कुन्दकुन्दाचाये। animn in . . . . . . होता है कि सम्यकदृष्टि ही इसलोक और परलोकमें महिमाको प्राप्त होता है । मिथ्यादृष्टि न कहीं सम्मान पाता है और न संसार-भ्रमणसे छूट सकता है। विना सम्यक्दर्शनके पुण्य भी पुण्यरूप नहीं। यदि किसीको मनुष्यजीवन सफल बनाना अभीष्ट है तो उसे जिनेन्द्रदेवकी सच्ची भक्ति द्वारा सम्यक् श्रद्धान प्राप्त करना अनिवार्य है। (८) चारित्र प्राभृत। इसमें ४४ गाथाओंमें आचार्यवरने सम्यक्चारित्रका कथन किया है, जो निर्वाण प्राप्तिके लिये अत्यंत आवश्यक है । सम्यग्दृष्टि सद्विवेकको प्राप्त होकर पापकर्मके कारणोंसे बचता है। क्योंकि सम्यग्दृष्टि वस्तुस्थितिको भलेप्रकार जानता है, इसलिये वह सचारिके पालन करनेमें सदा सावधान रहता है। गृहस्थों और त्यागियोंकी अपेक्षासे चारित्र दो प्रकार हैंगृहस्थोंको ग्यारह प्रतिमाओं (श्रेणियों) का और पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाबत पालन करनेका आचार्य ने उपदेश दिया है। मुनियोंका आचार पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्तिका पूर्णतः पालन करना अनिवार्य बताया है । इसीसे मुनिजनको जीवाजीवका प्रबोध प्राप्त होता है और वे रागद्वेष भावोंसे विरक्त होकर मोक्षमार्गपर गमन करते हैं।
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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