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भातीलाल
भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । [३७ शरणसूत्र और सामायक स्तोत्र भी लिखे हुये मिलते हैं, परन्तु इस सांख्यक अंतर और सूत्र वृद्धिसे प्रभाचंद्राचार्यका कर्ता विषयक कथन . संदिग्ध या अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।
भाषा शैली और अर्थपूर्णतापर विचार करनेसे यह निस्संदेह मान लिया जा सकता है कि इन भक्तियों के प्राकृत पद्य भागके कर्ता अवश्य श्री कुन्दकुन्द आचार्य हैं जिन्होंने किसी अपने समकालीन या पूर्वगत आचार्यके रचे हुये गद्य भागकी व्याख्या करते हुये प्रकरणचश यथोचित परिवर्धन करके उन्हें गाथाद्ध किया।:- ....
मूलाचार। यो प्रसिद्ध आख्यायिका तो विद्वज्जगत्में यह है कि यह ग्रंथ स्वामी कुन्दकुन्द कृत है और दक्षिण भारतकी कई हस्तलिखित प्रतियों में भी इस ग्रन्थके रचयिता स्वामी कुन्दकुन्द ही उल्लिखित हैं परन्तु इस ग्रन्थके टीकाकार श्री वसुनन्दि आचार्यने वट्टकेरको इस ग्रन्थका कर्ता व्यक्त किया है। उनकी इस धारणाका क्या आधार था यह नहीं बताया, न उन्होंने वट्टकेरका कोई विशेष परिचय दिया कि वे कौन थे, कब और किस गुरुकी परम्परामें हुये, न इस ग्रन्थकी किसी हस्तलिखित प्रतिसे या किसी अन्य शास्त्र अथवा किसी शिलालेखसे वट्टकेर नामसे किसी शास्त्रकारका उल्लेख मिलता है और न इनका रचित कोई शास्त्र ही उपलब्ध है जिससे इस ग्रन्थकी वर्णनशैली, भावुक विवेचना तथा सैद्धांतिक मर्मज्ञताकी तुलना की जा सके।
सुतरां इस शास्त्रकी भाषाशैली, विषयमौलिकता और मार्मिक विवेचना स्वामी कुन्दकुन्दाचार्य कृत प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियम