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३२] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य।
इनके अतिरिक्त कुछ विद्वानोंका विचार है कि तामिल भाषामें कुरल नामक शास्त्रकी रचना भी इन्होंने की, प्रत्युत कुछ तत्वान्वेषी विद्वानोंको इसमें संदेह है कि १-कुरल, २-परिकर्म, ३-दशभक्तिसंग्रह और ४-मूलाचारके प्रणेता यह आचार्यवर थे। अतः इसका अनुमंधान करना अत्यावश्यक प्रतीत होता है।
किसी प्रचलित आख्यायिकाके आधारपर यत्र तत्र ऐसा लिखा मिलता है कि दक्षिण मलायाके हेमग्राममें द्राविड़ संघाधीश एलाचार्य एक प्रसिद्ध विद्वान जैन मुनि थे। उन्होंने तामिल भाषामें थिरुक कुरल (प्रसिद्ध कुरल) नामक ग्रंथ रचकर अपने शिष्य थिल्बुल्लुवरको दिया, जिसने उसे मदुरा संघ (एक वृहद् कविसभा) में स्वकृतिक रूपमें प्रस्तुत किया।
द्राविड़देशीय होनेके कारण इन्हीं आचार्यवरको द्राविड संघाध्यक्ष मानकर कुरल कर्ता एलाचार्य प्रसिद्ध किया जाता है। इस आख्यायिकाकी यथार्थता बहुत ही अविश्वसनीय है। क्योंकि यदि थिरु बुल्लुबर ऐसे साधारण ग्रन्थकी स्वयं रचना करनेके अयोग्य थे तो उनके गुरु कविसम्मेलनमें प्रस्तुत करनेके लिये उन्हें अपनी रचना नहीं दे सकते थे और न वह इसे विद्वत्समाजके. समक्ष प्रस्तुत करनेका साहस कर सकते थे, न उन्हें इतना असभ्य और कृतघ्न समझा जा सकता है कि वह अपने गुरुकी कृतिको अपनी रचनाके रूपमें प्रस्तुत करने । यदि वह ऐसा ग्रन्थ स्वयं निर्माण करनेके योग्य थे तो उन्होंने