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________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। [११ नामसे व्यक्त नहीं किया गया। बादमें इनको इस नामसे कहीं निर्दिष्ट करना नितांत निराधार है। तात्पर्य, उपरोद्धृत प्रमाणों और हेतुओंसे सिद्ध होता है कि. हमारे चरित्रनायकका पद्मनन्दि और कुन्दकुन्दाचार्यके अतिरिक्त और कोई नाम नहीं था। - पितृकुलादि। पुण्याश्रव कथा-कोशमें इन आचार्यवरका गार्हस्थिक जीवन इस प्रकार दिया है कि भरतखण्डके दक्षिण प्रान्तीय पिदाथनाडू जिलेके अन्तर्गत कुरुमारई नगरमें कर्मुड सेठ अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सहित रहता था, उसके बालवयस्क वाला मथिवरनने उद्यानमें कुछ, वृक्ष पतझड़की ऋतुमें फलेफूले देखे। वहां जाकर उसने वहां एक मुनिस्थान देखा जहां शास्त्रोंकी एक पेटी रक्खी हुई थी। उसने यह भी देखा कि समग्र उद्यान दावानलसे भस्म होचुका है परन्तु वह स्थान बिल्कुल सुरक्षित है। ग्वाला उन शास्त्रोंको अपने घर लेआया और उन्हें एक पवित्र उच्च स्थानपर विराजमान करके श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करने लगा। एक दिन उसके स्वामी सेठने एक मुनिको आहारदान किया उसी समय उस बालाने उन्हें वह शास्त्र भेटकर दिये। मुनि महाराजने सेवक और स्वामी दोनोंको आशीर्वाद दिया, जिसके फलस्वरूप उस बालबालने मरकर उसी निस्संतान सेठके घर जन्म लिया और शास्त्रदानके प्रभावसे समस्त सिद्धान्तका पारगामी होगया। अन्तमें उसने रोग्य भावोंसे प्रेरित होकर दिगम्बरी दीक्षा धारणकर ली, और दुर्द्धर
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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