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१०] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । विदेह यात्राका समर्थन तो है परन्तु गृद्धपिच्छ ग्रहण करनका कोई उल्लेख नहीं है।
इनके अन्वयी उमास्वामी भी गृद्धपिच्छ नामसे प्रख्यात थे ।
ईसाकी आठवीं शताब्दिकं विद्वान विद्यानन्दिन जो इन्हीं आचार्यक अन्वय और शिप्य परम्परामें हुये हैं, तत्वार्थसूत्रकी टीका “ राजवार्तिक '' में श्री उमास्वामीको गृद्धपिच्छ लिखा है । यथाएतेन गृद्धपिच्छाचार्य धुर्यतं, मुनिमूत्रण व्यभिचारिता निरस्ता प्रकृतसूत्रे ।
ईसाकी नवी शताब्दिमें रचे हुये धवल ग्रन्थमं भी तत्वार्थसूत्रके कर्ताको गृद्धपिच्छ नामसे उल्लिखित किया है।
श्रवणवेगोलके शिलालेखमें जो १११५ से १३९८ ई० तक सम्पादित हुआ था. कुन्दकुन्दस्वामीके बाद उमास्वाति (स्वामी). का उनके गुण प्रत्यय गृद्धपिच्छ नामसे वर्णन किया है यथा
तत्वार्थसूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणींद्रसंजातमुमास्वामिमुनिश्वरं ॥
परन्तु इस शिलालेखमें कुन्दकुन्दस्वामीके साथ गृद्धपिच्छ विशेपण नहीं दिया है। यदि वह भी इस नामसे प्रसिद्ध होते तो शिलालेखमें जहां उनका वर्णन किया गया है उनको भी गृद्धपिच्छ नामसे अवश्य वर्णन किया जाता।
इसके अतिरिक्त और भी शास्त्रकारोंने तत्वार्थसूत्रके कर्ता उमास्वामीको गृद्धपिच्छ घोषित किया है परन्तु हमारे चरित्रनायकको १४ वीं शताब्दिसे पूर्वके किसी शास्त्र या शिलालेखमें गृद्धपिच्छ.