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है । तारे एक नदनवेली दुल्हन की साडी पर लगे सितारो की भाति चम चमा रहे है । तारो के मध्य मे चान्द आनन्द अमृत को बिखे - रता हुआ प्रह्लादित हो रहा है। नदी का कल-कल मधुकर शब्द और शीतल मन्द पवन, उत्साह में मीठा दर्द पैदा कर रहे हैं।
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सेनापति ऐसे समय में अपनी सम्पूर्ण सेना के मध्य मे सडा हुआ नये-नये आदेश सुना रहा था । चतुरगिणी सेना को उत्माहित कर रहा था । प्रात. के प्रयाग का सन्देश सुना रहा था ।
सेनापति के ओज और उत्साह भरे वाक्यो को सुन-सुनकर प्रत्येक सनिक उत्साहित हो उठा । चेहरों पर मूँछे तन उठी। गन भन्न हो उठा। बाहुऐ फड़क उठी । जोश चमक उठा। शोर्य झलक
उठा ।
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जय भरत | जय भरत । की गूज से रात्री का शान्त नीरव वातावरण गूजित हो उठा। सोई हुई मीठी नींद मे मस्त जनता चोक उठी। एक दूसरे से पूछने लगे---
"
"या बात है
"कहाँ ?"
"अरे । तुमने सुना नही "यह देखो सुनो"
"अरे हा । यह याद तो महाराज भरत की सेना का है।
पर इस वक्त ???"
..
..
"सेना की जगनाद है । वो "यह तो पूछना ही पड़ेगा किसी मे ?"
तभी पास वाले महल की सिकी भी जुली । उनमें से किसी की गर्दन दिखाई दी। फिर मैंने उनसे
बन्द करनी नाही।
तभी
"सुनिए।"
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"" "यह नाव क्यो हो दी
दया बात है ?"