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दोनो भाई प्रसन्नता से पुलकित हो रहे थे। तभी द्वारपाल ने अन्दर प्रवेश कर अभिवादन करते हुए बड़े हर्ष के साथ निवेदन किया
"प्रभो । • ...." "कहो । कहो । क्या बात है ?"
"अयोध्या के महाराज आदिनाथ का हमारे शहर में प्रवेश हुना है।"
"अरे । !! ....और कौन है उनके साथ ?' ' "कोई भी तो नहीं । वे अकेले ही है और वे भी नगे।" "नगे ? क्यो ? "श्रयान्स ने आश्चर्य से पूछा ! "उन्होने दीक्षा ले ली थी-शायद इसीलिए।" सोमप्रम ने गम्भीरता से उत्तर दिया ।"
दोनो भाई दौडकर महल से नीचे पाए । क्या देखते है कि -आदिनाथ मुनि आये हुए है और हस्तिनापुर की जनता उन्हे पहचान कर..."नाना भांति के प्रसाधन उन्हे भेंट कर रही है । स्त्रियो का उत्साह इतना वढा चढा हुआ है कि उन्हें देखने के लिए बावली सी हुई आ रही है। श्रेयान्स कुमार ने भैया से कहा
"अरे । इस स्त्री के हाथ तो आटे से सने हुए है।"
हा । और उस स्त्री को देखो जिसके केश में अभी भी पानी चू रहा है।" - "और उसको देखिए " 'उस पंड के नीचे वाली को
जिसने काजल होठो पर और सिन्दूर की लाली आखो पर लगाई
"परे । इसको देखो जो भागती हुई अपनी साडी को प्रावी पहने आधी सिमेटे पा रही है। जिसे अपने तन की भी सुधि
नही ॥