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विशाल एव सुन्दर नगरी हस्तिनापुर मे उस वक्त राजा सोमप्रभ थे । इनके एक छोटे भाई का नाम था श्रेयान्स कुमार, श्रेयान्स कुमार योग्य और पुण्याश्रव से श्रोत प्रोत थे । विचार विवेक सम्पन्न यह श्रयान्स कुमार अभी रात्री के पलायमान हो जाने पर सोकर उठे ही है ।
चेहरे पर प्रसन्नता और प्रसन्नता के करण करण से मिली हुई जिज्ञासा किरण । भावो मे उमग और हृदय मे आनन्द की तरग । चकित से, पुलकित से, हर्षित से श्रयान्स कुमार शैया से उठकर स्नान आदि से निवृत्त हुए | पश्चात् अपने बड़े भ्रात के [ास पहुच चरण छू कर बैठ गए। चेहरे की प्रसन्नता, भावो मे जज्ञासा देखकर सोमप्रभ ने पूछा
"क्या बात है श्रयान्स ?"
"बडी अद्भुत बात है भ्रात "
" मैंने रात्री को, सोकर उठने से पहले कुछ स्वप्न देखे है
!!
"स्वप्न 11 "
" हा भ्रात !"
"कैसे स्वप्न ? क्या क्या देखा है तुमने स्वप्त में ?"
'बहुत बडा स्वर्ण सरीखा सुमेरू पर्वत, कलावृक्ष, सिंह, सुडोल बैल, सूर्य और चन्द्रमा, समुद्र और सातवे स्वप्न मे कुछ देविया देखी जिनके हाथो मे अष्ट मंगल द्रव्य थे ।"
י 11
"वाह | वाह वाह "
1
"क्यों ? ऐसी क्या बात है ?"
"तुम्हारे स्वप्न के आधार पर तो ऐसा प्रतीत होता है कि आज हमारे शहर मे कोई महान प्रभावशाली, पुण्यात्मा, जग- पथ प्रदर्शक, और धर्म नौका का खिवैया प्राने वाला है ।"
"सच 11 " श्रेयान्स कुमार का रोम रोम नाच उठा ।