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"पर जव वादल उसके आगे आ जाते है तो प्रकाश कहा चला जाता है ?"
"उसका प्रकाश.."उसका प्रकाश....." "बोलो ? वोलो" "छिप जाता है !" "कहा ?" "या | ...नहीं नहीं । रुक जाता है । "क्यो?" "क्योकि बादल जो आगे आ गया ।"
"तो क्या सूर्य से भी विशेष आभा वाला या शक्ति शाली वादल हे ?"
"नही तो।" "फिर ? ? ?" "आपने तो मुझे उलझन में डाल दिया।"
"उलझन नहीं है मेरे दोस्त । यह न्याय की तुला है। सूर्य की प्रभा सूर्य मे ही है । मात्र बादल की ओट मे रहने से वह हमे दृष्टिगत नही होती । पर ज्यो ही बादल हटा कि प्रभा फिर चमक उठती है ?"
"ओह अब समझा " "समझ गए ना?"
"हा अब समझा कि जैसे बादल के प्रावरण से सूर्य कोप्रभा दृष्टिगत नही होती वैसे ही प्रात्मा पर छोए कर्मावरण से भी आत्मा की महानता दृष्टिगत नहीं होती। और उसी के अनुकाल प्रतिकूल वातावरण होता रहता है ।
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