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" भला जो भगवान ठहरे, उन पर क्या प्रशुभ हो सकता
है ?"
"अरे भैया ? आदिनाथ थे तो पुरुष ही । थे तो सांसरिक प्राणी ही है। अपने शुभाशुभ कर्म से अभी बिल्कुल रहित तो हुए नही थे । पितु कर्मों की कडिया काटने मे तत्पर थे । जब तक कर्मो की कडिया कट न जाती तब तक तो वे असर दिखाएगी ही ?"
" गलत | हम नही मानते ।" "क्यो नही मानते "
"इसलिए कि जिन्होने छह माह तक घोर तप किया । जिन्होने राज्यपाट परिवार के प्रति किन्चित भी मोह नही किया ऐसे प्रभावशाली महान् श्रात्मा का कर्म कुछ नही विगाड सकते । श्रीर haw 11
हैं तो
"शोर क्या ?"
"और यदि कर्म फिर भी ऐसी आत्मा का कुछ बिगाड सकते
तो
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"हा । हा बोलो तो क्या ?"
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"तो समझो वह आत्मा महान् श्रात्मा नही हो सकती !" " कल्पना तो सुन्दर है पर विवेक और न्याय संगत नहीं |" "क्यो ?"
"वह इसलिए कि आत्मा प्रभावशाली है, अवश्य है----पर कर्मावरण उसको ढक देते हैं तो उसकी प्रभा उसी तक सीमित रहकर लुप्त सी रह जाती है ।"
"यह कैसे ?"
जैसे सूर्य प्रभावशाली होता है । होता है भी ?" "हा हाँ । होता है ।"