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दिया।"
"हाय ! हाय ! कैसा पुत्र है ?" कई राजा महाराजा उनके पास रथ ले आये "बोले--- "इसमे वैठिये महाराज।" "हा हा प्रभो । अपका पैदल चलना शोभा नहीं देता।" "देखिये आपके पैरो मे काटे चुभ जायेगे।"
सभी कुछ कहने लगे" पर आहारचर्या पर चलने वाले महामुनिराज इन सबको अन्तराय जानकार वापिस वन मे चले जाते । और फिर ध्यान में बैठ जाते।
छ माह और व्यतीत हो रहे है" पर नवधा भक्ति से आहार किसी ने भी नहीं दिया । दे भी कौन ? ना तो किसी ने बताया और ना किसी ने पहले दिया।
आप सोच रहे होगे कि वे देवता अब कहा गये जो गर्भ व जन्म के समय रत्न बरसा रहे थे । जो मुनियो को भ्रष्ट होते हुये उन्हे मुनिपद बता रहे थे। ___ क्यो नही वे ही देवता गृहस्थियो को नवधा भक्ति बताते? क्यो नही आहार क्रिया बतलाते? क्यो नही आहार देते?
दे भी कैसे देवता तो कोरे पुण्य के दास होते हैं। पूरे स्वार्थी । उनका क्या विश्वास ? जब शुभ या पुण्य का उदय होता है तो देवता भी चरण छूने दौड पाते है। और अशुभ का उदय होता है तो एक कोने मे छिपे बैठे रहते हैं ।
भगवान आदिनाथ के भी कोई अशुभ का ही उदय था । "अरे । भगवान के भी प्रशभ का उदय ???" "क्यो ? इसमे आरचर्य ही क्या है ?" "तरासर आश्चर्य है ! ऐसा तो हो ही नहीं सकता।" "क्यो नहीं हो सकता?"