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इस प्रकार अवोध और भोली भाली प्रेम रस मे भीगी जनता के हाव भाव देस ही रहे थे कि आदिनाथ को अपनी ओर पाते देखा। दोनो ने दौडकर चरण छूए। पद प्रक्षालन किया और नमोस्तु कहकर अपलक उनको निहारने लगे। __ श्रेयान्स कुमार तो देख कर देखते ही रह गए। बार-बार एक टक से निहारते ही रह गए । उनके मस्तिष्क मे एक झन्नाटा सा हुआ जैसे उन्हे विस्मृत, स्मृति का भान हो रहा हो। कभी प्रांख मीचते कभी खोलते, कभी हर्प से पुलकित हो उठने
और कभी रो पडते । अनन्त विगत की विस्मृति जागृत हुई जा रही थी। तभी उन्हें ऐसा अहसास लगा जैसे उसने कभी ऐसे ही मुनि को आहार दिया हो। वह विस्मृति और भी जागृत हुई तो जैसे प्रत्यक्ष, स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि मुनि द्वार पर पाए उन्हे पडगाहन किया, और नदधा भक्ति से साहार दिया । श्रेयान्स अपनी विगत स्मृति मे खो गए । तभी सोमप्रभ ने उसकी
और देखा और बोले- 'श्रेयान्स।' ___'आँ।" श्रेयान्त कुमार जैसे सोकर उठे हो । उन्होंने अब प्रत्यक्ष देसा कि भगवान आदिनाथ तो मुनि बने हुए आहार की मुद्रा धारण करके सामने खड़े हुए है । और मैं • मैं '
श्रेयान्स कुमार ने आस पास देखा आहार की कहा व्यवस्था । फिर भी दोडकर शुद्धता पूर्वक गन्ने का रस तैयार करवाया । आप भी नहा-धोकर शुद्ध हुए। भावो को विशुद्ध । बनाकर एकदम हाथ में जल से भरा कलश ले द्वार पर आकर बोलने लगे...
"हे स्वामी । अत्र तिष्ठहु, तिष्ठहु, तिप्ठहु आहार जल
सबकी दृष्टि उस ओर गई । सव इस नई विधि नई रणवी