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"हा ' हा ' भगवन् सचमुच हमने यही सोचा था कि घर के झगडो से छुटकारा भी मिलेगा और खाने पीने को भी अच्छा मिलेगा।"
"पर भगवान् । प्राप तो आाख मोच कर पत्थर वने ऐसे बैठ ऐसे बैठ गये कि जैसे हमे पूरे ही भूल गये हो ।”
गये
इस प्रकार अपने आप ही सोच विचार कर व्याकुल मुनि लोगो ने यदा कदा घूम फिर कर कन्दमूल फलादि खाने लगे । सयम का मार्ग सहन न कर सकने के कारण अनर्गल कार्य कर रहे थे । नगे भी और अनर्गल कार्य भी कर रहे थे। तभी ..
..
तभी एक ओज भरी वारणी गूजी
"ठहरो ||" "कोन ?
"आप सब मुनि हैं, और जो कुछ आप कर रहे हे—वह मुनि योग्य नही । या तो आप मुनि वेश का त्याग कर दो या मुनि ही रहना चाहते हो तो सयम शिखर से यो मत गिरो ।
"तव हम क्या करे ?"
"या तो यह मुनिपद छोडो या अटल रहो ।"
... "
..
"हम मुनि हो तो बने हुए हैं ?"
"तो फिर यह कन्दमूल फल खाना, गन्दा कीटाणुयुक्त पानी पीना, छोड़ना पड़ेगा ।"
"पर भूख प्यास जो लगी है ?"
"तो क्या तुम अपनी इन्द्रियो पर थोडा सा भी सयम नही कर सकते ?"
"सयम करते-करते तो आज पाच माह व्यतीत हो गये । अव नही रहा जाता ।"
" तो छोड दो मुनिपद । '