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"और इसीलिये आज देखते-देखते निलाजना मृत्यु को प्राप्त हो गई।"
"हा प्रभो ।" तभी
तभी एक नृत्यिका फिर प्रकट हुई। वैसी ही | वैसा ही नृत्य । वैसे ही वाद्य पर भगवान आदिनाथ उठ खडे हुए ओर वोले
"नृत्य रोक दो । अब यह छलावा और न करो।"
"क्यो भगवान् | क्यो रोक दूं नृत्य को ?" आपको तो नृत्य देखना है ना " • मैं नृत्य ही तो दिखा रही हू " क्या मेरा नृत्य अापके मन को नहीं भाया • • क्या मै सुन्दर नहीं ? .. क्या मै मोहक नहीं? .. क्या मैं अप्सरा नही ? • "
"हा हा । तुम सब कुछ हो । पर वह क्षरण ! वह समय । वह दृश्य अब समाप्त हो चुका है । और जो क्षण, जो समय वचा है उसे यो समाप्त नहीं किया जा सकता ।"
भगवान आदिनाथ सभा मण्डप से प्रस्थान कर गए। राजा महाराजा इस रहस्य से भीगे के भोगे ही रह गए।