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सिर हिलते-हिलते रक गये । वातावरण रो उठा । सव श्राचयं के रंग में रंगे हुये देखते के देखते ही रह गये ।
'कहा गई ग्रप्सरा "
"चाय क्यों एक गये ?"
" नृत्य क्यो रक गया ?"
"धुलाग्र बुलाओ प्रप्सरा को बुलाओ ।" "उसका नृत्य और होने दो।"
·
"हम उसका नृत्य और देखेगे ।"
सभा मप पोरगुल से गुज उठा। भगवान आदिनाथ ने भी पूछा, "कहाँ गई नृत्यिका
?
तभी एक भव्य पुरष पाया। उसके पाते ही ना
मे पुन, शान्ति छा गई । म उम भव्य पुरष की प्र
यहा धन्य पुरुष भगवान श्रादिश के महामहो
गया। भगवान ग्रादि नाथ ने पुन पुरा
"यहाँ गई वह ि भय में
*"