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( ४४ ) मखमली से कालीन पर प्रकट हुई। ___ वाद्य तेज हो गये । नृत्य मोहक हो उठा । अप्सरा कभी इस कौने, कभी उस कोने, कभी ऊपर, कभी नीचे की ओर फुदकती हुई नृत्य कर रही थी। सभासद आनन्द और रहस्य के मिले जुले रंग मे मस्ती से झूम रहे थे।
"कौन है यह?" "क्या मालुम ?" "कहाँ से आई है ?" "यह भी मालूम नहीं ?" "किसने बुलाया है इसको " "इसका भी अनुमान नहीं ?" "तो फिर . . "देखे जाओ .. वीच मे मजा किरकिरा मत करो।
मनमोहक और आश्चर्य भरी नृत्य को देखकर सभी भूम रहे थे। भगवान आदिनाथ भी नृत्य की मोहकता मे वह उठे थे । अप्सरा तो अप्सरा ही थी ! नाम था इसका निलाजना। इसका नृत्य देखने को तो स्वर्ग मे देवो की म लग रही थी
स्वर्ग में इन्द्र की प्रथम अप्सरा । महान नृत्यिका । और महान् सौन्दर्य की देवी । जो आज पृथ्वी तल पर वसे मानवो को सुलभ हो रही थी। ___वीणा और मृदग द्विगुण में बज रहे थे । अर्थात ताल दुगनी हो उठी, फिर तिगुनी और चौगुनी । तबला इस पर भी ताल का माय दे रहा था । और तभानदो के सिर भी उमी ताल मे हिल रहे थे। प्रादिनाय भी उनी ताल में सो रहे थे।
तभी . . हो तभी । वीरणा का तार हट गया । वरना फट गया । मदग उठी मोर निनाजना, देखते ही देखते प्रदत्य हो गई । मयके