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( ४१ )
उठे । बोले उठो । अपना अध्ययन करो ।"
0.004,
दोनो अपने आप दृढ प्रतिज्ञ हो मस्तक झुकाकर चली गई ।
एक जगह दोनो जा बैठी...
"अव क्या होगा ?" "क्यो ?"
.....
"क्या हमारा विवाह होगा ही ?"
"नही तो ।"
"यह नही तो, नही तो क्या लगा रखी है। गम्भीर होकर कुछ सोचती तो है नही ।"
" सोचतो लिया ।"
"क्या ?
" कि हम विवाह नही करेंगे ?" "तो ???"
'हम तो दीक्षा लेगी दीक्षा । समझी।"
'अरे |||" प्रसन्नता से नाच उठी ।
'हा । 'आज इन कर्मयुग मे हमारी आवश्यकता प्रत्येक नारी को है । प्रत्येक नर को है । हम शिक्षा, नागरी और इकाई गणित तभी सिखा सकेगी लबकि घर घर द्वार द्वार जाकर मानव मे सस्कार डालेगी ।
'अरे हा ' यह अच्छा हुआ ।'
'तो पक्का ।'
'सत्यत पक्का |
और दोनो का मन प्रसन्नता से नाच उठा ।
अयोध्या प्रदेश वे नामित ऋषभदेव (आदिनाथ ) ने पापारा कालीन प्रकृत्यास्मित असभ्य युग का पन्त करके ज्ञान-विज्ञान सयुक्त कर्म प्रधान मानवी सभ्यता का भूतल पर सर्वपथन म नम किया। अयोध्या ते हस्तिनापुर पर्यन्त प्रदेश इन नवीन