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सभ्यता का प्रधान केन्द्र था ।
श्रादिनाथ ने राज्यभिषेक के पश्चात् राज्य व्यवस्था की, समाज सगठन किया और नागरिक सभ्यता के विकास के वीज बोए । कर्माश्रय से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के रूप मे श्रम विभाजन का भी निर्देश किया । वे स्वय इक्ष्वाकु कहलाए इससे उन्ही से भारतीय क्षत्रियों के प्राचीनतम इक्ष्वाकु वंश का प्रारम्भ हुआ ।
आज प्रात से ही देश प्रदेश के राजागरण आ रहे थे । उनके विश्राम की विशेष व्यवस्था की गई थी । एक विशाल और रमणीक महा मण्डल सजाया हुआ था। जिसमे बैठने की सुन्दर व्यवस्था की हुई थी । इस महा मण्डप मे प्रवेश करते ही ठीक सामने रमणीक व भव्य भव पर एक मरिंग करणो से सुसज्जित सिंहासन लगा हुआ है । मच के समक्ष द्वार तक खाली स्थान था, जहाँ सुन्दर मखमली सा कालीन विद्या हुआ है ।
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किनारो पर श्राजू वाजू पर दोनो ओर राजा गण, एव समाज के बैठने की व्यवस्था है । जहाँ सभी सजे धजे से बैठे है | सभी की दृष्टि मे एक भव्य प्रतीक्षा की झलक है | मच का सिंहासन अभी खाली है । मात्र दो सेवक हाथ मे चवर लिए सिंहासन मे दाएँ वाऐं मन मुग्ध से सडे हैं ।
तभी जयनाद गू जी | स्वागत वाद्य वजा । और अनेक श्रभूपरणो से सुनज्जित भगवान श्रादिनाव का प्रवेश हुया । सभासद उठ सजे हुए और सिरकार अभिवादन दिया। श्रादिनाथ सिंहासन पर विराजे और सभी को प्रपेत दिया कि अपने अपने स्थान पर बैठ जाएं।
'पना होने वाला है " एक सभासद ने दूसरे मे उत्सुकता ये हुये पूजा |
'शाया कुछ विशेष प्रयोजन है । दूसरे ने फनविन ना उत्तर दिया।