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( ३३ ) 'धन्यवाद । 'जी!! I...।'
'वटी । तू बडी भाग्य शालिनी है । तेरी होने वाली सन्तान सत्यत्त ऐसी ही होगी जैसी तेरी ईच्छाये है।
'जी | | | ..." और सुनन्दा शर्म की मारी सास के अक से जा लगी।' ___ महाराज नाभि ने भी सुना तो फूले न समाये । सारी जनता ने खुशियाँ मनाई । आदि नाथ भी आज प्रसन्न हो रहे थे । क्योकि आज प्रभात मे ऊपा की प्रथम किरण के साथ रानी सुनन्दा की कुक्षी से पुत्र-रत्न का जन्म हुआ था। - गरिष्ठ गठा हुआ शरीर, सुडोल लम्बी बाहुये, और तेज से पूर्ण चहरा । छोटे से शिशु को यो देखकर नाम सस्कार पर नाम बाहुवली रखा।
बाहुबली का बल और विशाल शरीर शैशव अवस्था मे भी आश्चर्य कारी लग रहा था । अत यह अनुमान लगाया कि युवा होने पर वाहुबली-महान् बली, महान् शरीरी, और महान् कामदेव होगे । आदिनाथ ने अपने पुत्र का रूप, शरीर, भुजाये देखी तो देखते ही रह गये।
समयान्त पर सुनन्दा ने एक कन्या रत्न को भी जन्म दिया। जिसका नाम सुन्दरी रखा गया।
अब राजा नाभि और रानी मरूदेवी एक सौ एक पौत्र और दो पौत्रियो के दादा दादी थे। भगवान आदिनाथ ने चारो की शिक्षा आदि का भार अपने ऊपर लिया । दोनो प्रमुख पुत्र भरत और बाहुबली, विद्या, कला, दीप्ति, कान्ति और सुन्दरता मे समान लग रहे थे। ___ शारिरिक गठन की दृष्टि से बाहुबली का शरीर विशेष गठीला और विशाल था । जबकि भरत का शरीर सामान्य वलशाली के समान था।