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द्वितीय रानी सुनन्दा के महल में छम-छमा छम हो रही है। आदिनाथ-मोद-भरे, प्रसन्नता के साथ रानी सुनन्दा सहित नृत्यकियो का मन मोहक नृत्य देख रहे हैं ? सुनन्दा, आदिनाथ के निकट अपने आप में सिकुडि हुई उमंग की तरग में मौज ले रही थी ।
तभी मरुदेवी ने प्रवेश किया । नृत्य रुक गया । आदिनाथ और सुनन्दा ने पैर हुये और मां मरुदेवी ने आशीर्वाद दिया । कुछ नम्रता से भरे हुये प्रदिनाथ यहाँ से प्रस्थान कर गये । मा मरुदेवी उच्चासन पर विराज गई । एकाएक मरूदेवी की दृष्टि सुनन्दा के चेहरे पर जाकर रुक गई । सुनन्दा का हृदय-तार
छनछना उठा ।
पैटी [] > सुनन्दा 'जी माताजी
''
'क्या, तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो "
•
'जी नही तो नही तो ।'
"नही । नही ! अवश्य तुम छिपा रही हो । देखो बेटी | इस
अवस्था मे कुछ बात छिपाना हानि कारक हो जाती है । क्या तुम्हे कुछ माह
11444 "
'जी | ||...आं.. हाँ ' हा ' आपने ठीक जाना है."
444 .
1 1
ठीक हो जाता है "1'
और रानी सुनन्दा अपने आपमे
-
शरमा गई ।
alog
'अच्छा यह तो बताओ मेरा तात्पर्य यह है कि कोई ईच्छा
"
दोहला
'जी हां "मेरा मन
•
करू, घमण्डियों का ग
दूपर ''
तुम्हारा मन क्या वह रहा है
कोई कामना
·
·
कोई
मेरा मन कर रहा है कि में तपस्या करू और प्रशिक्षित को शिक्षा