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१२-संसार के सृजन हार का जन्म
अबकार को विलीन करता हुआ प्राची के प्राचल मे से दिवाकर प्रकट होने जा रहा था। चारो दिशाये गुलाब के फूल की तरह खिल उठी थी। रग-बिरगी, हल्की भारी, सुनहली किरणो से सारी दिशायें शरमाती सी मुस्करा उठी थी। आज हर प्राणी प्रसन्नता से भरा दिखाई दे रहा था। गगन मे पक्षी मौज की उडान ले रहे थे । पवन, मन्द, सुगन्ध, शीतलता के साथ कोने-कोने मे आ जा रही थी।
रानी मरूदेवी अपने ही कक्ष मे शयन कर रही थी । देविया सिरहाने, पैरो की ओर, तथा अगल बगल में बैठी हुई थी। सभी प्रसन्न और मोद भरी थी।
महाराज नाभि, अपने दरबार मे मन्त्रियो, सभासदो से प्रभात कालीन सभा में बैठे चर्चाय कर रहे थे। तभी · · हाँ हाँ तभी ध्वजाये लहा उठी, मन्दिरो मे अनायास ही घन्टे घडियाल वजने लगे । शख नाद गांजने लगे जयजयकार होने लगी। सभासद प्रमन्नता से भरे-पर-याश्चर्यान्वित हो एक दूसरे की ओर देख रहे थे। नाभिराज कुछ कहने ही जा रहे थे कि एक देवी ने पायल की मधुर ध्वनि के साथ प्रवेश किया और प्रसन्नता के सागर से छलकी हुई कहने लगी--
"भगवान नहषभदेव ने अवतार ले लिया है ?"
अरे । सब उठ खडे हुए । महाराजा नाभि ने अपना भडार खोल दिया । दान दिया जाने लगा। प्राज सारी अयोध्या का कन
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