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________________ ( २० ) कन सजाया जाने लगा। मगलगीत, नृत्य, होने लगे। हर ओर खुशिय नाचने लगी । जय । जय होने लगी। उघर स्वर्ग मे भी भागदौड मच गई । विना वजायें बाजे वजते देख, अपने सिंहासन को हिलता देख, इन्द्र ने जान लिया कि भगवान ऋषभदेव ने जन्म ले लिया है। पूरे साज सज्जा के माथ, अपने सभी परिवार के साथ विशाल और भव्य ऐरावत हाथी पर विराजमान हो इन्द्र अयोध्या पाया । सारी अयोध्या नगरी पर रत्न वरसाए गए। इन्द्र ने ऐरावत हाथी सहित नगरी की तीन प्रदक्षिणा दी। पश्चात् राजभवन के समीप ऐरावत को रोका। ___इन्द्राणी, ऐरावत पर से उतर कर सीधी रानी मरूदेवी के प्रसव कक्ष मे गई । वालक माता की बगल मे लेटा हुआ घा ! प्रसन्न और विकसित पुष्प सा । इन्द्राणी धन्य हो उठी । उसने वालक को उठाना चाहा पर यह सोचकर कि माता दु ख मानेगी, इन्द्राणी ने मायामयी नीद से रानी को सुलाकर और एक माया मयो बालक पैसा ही बनाकर, वालक ऋषभदेव की जगह सुलाकर बालक पभदेव को अपनी गोदी मे उठा लिया। इन्द्राणी वालक को बार-बार निरखे जा रही थी। उसकी वह निरसन को भूख मिटना ही नही चाह रही थी। फिर भी इन्द्र की प्राजा को ध्यान में रख वह बालक को वाहर ले पाई और महारा इन्द्र को नोप दिया। चन्द्र ने बालक को निरखा । वढे प्रसन्न हुये । अपने कन्ये पर विराजमान करके मनी परिवार सहित पान्डक्वन को प्रोर चल पड़े पाप्टग वन में लगीक पाण्डुशिला पर पूर्व की ओर मुत्र करने चानक ने प्रत्युनम सिंहासन पर विराजमान किया और उत्साह समग, ग्य जगाने के नाय नमामिक रिया ! भोर नोरन्हवन ने के पश्चात् इन्द्रागी ने बाता, पम्वामा पहनाये । बालकामदेव अनुपम नगेन्दयं को नाग
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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