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अवश्य ही कोई कारण रखता हे । तभी तो भरत जी उदास ने हो रहे हैं ! क्यो ??
क्योकि अभी-अभी उन्होंने कुछ स्वप्न देखे है, जो भयावह चौर नेप्ट मालूम होते हैं । लोन निराकरण करे इन स्वप्नो का? भरत जी चिन्ता मे थे। तभी उन्हे भगवान् आदिनाथ का स्मरण हो पाया।
प्रभाती की मगल ध्वनि गूज उठी। चारो ओर के वातावरण मे चहल-पहल प्रारम्भ हो गई। भरत स्नानादि से निवृत्त हो, उदास मन से भगवान आदिनाथ के पास वहा पहुंचे जहा उनना समवशरण आया हुआ था।
विशाल समवरशरण (सभा मडप) मे प्रवेश करके भरत ने भावान आदिनाथ के दर्शन किए। तीन प्रदक्षिणा दी और भक्तिभाव से पूजा की। फिर मनुष्यों के पक्ष में जा बैठे। स्तुति करने के पश्चात् भरत ने नन्न होकर पछा___'भगवन् । मेरी कुछ शकाये हैं जिनका समाधान चाहने को मेरा चित्त व्याकुल है । हे प्रभो । एक तो मैंने पाह्मण वर्ग का निर्माण किया है तो वताइए प्रभो कि इनकी रचना में क्या दोप है ? गुण क्या है । और इनकी रचना योग्य हुई प्रथवा नहीं । दूसरी बात भगवन्, यह है कि मैने गाज ही रात्रि में कुछ स्वप्न देखे है, जिनको देखने के पश्चात् चित्त व्याकुत्त है । हे प्रभो । यो मेरा चित्त व्याकुल है ?
भरत ने निवेदन कर देने के पश्चात् जो स्वप्न देले सुना दिये । तब भगवान ने अपनी दिन ध्वनि के द्वारा सरल समाान इस प्रकार क्रिया---
'हे वत्स । तूने जो ब्राह्मण वर्ग अर्थात् सय वर्ग को जो रचना को है वह योग्य तो है पर वह चतुर्थ काल (सतयुग) तक ही सौमित और कार्यकारी होगी । पश्चात् पदम काल (कलियुग) मे