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'क्यो ? ऐसी क्या बात है जो मैं आज्ञा नहीं दे सकता।'
'महाराज । वैसे भी आज पर्व का दिन है और हम सब बती सयमी है, हम इस वनस्पति काय के जीव को रोदना नहीं चाहते, इस पर विचरते छोटे-छोटे जीदो को मारना नहीं चाहते।'
'परे ।। 1. भरत चौक ते गए।
'हा राजाधिराज । भोजन की लोलुपता के लिए हम अपना व्रत (नियम) नहीं तोड़ सकते । यह सयम की आन है।'
'अच्छी बात है तब आप दूसरे द्वार से शा जाइए।' 'कैसे पा सरते हैं ? उपर भी ऐसी ही घास है।
तभी महारानी मुभद्रा गाई । उसने यह तब सुमवाद सुन लिया था। नम्रता और साम्य भाव से उन सबको नमस्कार किया पौर राज्य-भवन की पोर अपने साथ चलने का उनसे आग्रह किया।
सभी प्रवगेपनी सयमी नागरिक चले। मक्को भोजन पराया। गोजन को पचात् विशाल नगा भवन में हजारो पी जन माया के मध्य महाराज भन्त पन्दी ने घोषणा की
'माज हम एक मे वर्गी पापना कर रहे हैं जो मयगी होगा, सदाचारी पोर रिक्षक होगा। अहि की भावना में और पोत परिग्रह परिमारा मनात या धारी हो । जो सय