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( १३३ ) का निश्चित समय भी उन्हे बता दिया गया । ___ आज विशेष पर्व का दिन या। प्राय इस पर्व पर धार्मिक विचारो का पूर्ण ध्यान रखा जाता है । समय होते ही नागरिको का समूह भोजन शाला की ओर चलने लगा। विशाल और सुव्यवस्थित भोजन शाला का मडप भव्य और रमणीक था : सभी नागरिक एक साथ बैठकर भोजन कर सकते थे।
भोजन शाला के मण्डप के बाहर हरी-हरी घास जो कि लगवाई गई थी-लहलहा रही थी। छोटे-छोटे प्राणो उस घास पर विचरने के लिए छोड दिए गए थे । जनसमूह इस कृत्रिम उद्यान के उस किनारे पर रुक गया। क्योकि इन्हे दरबान ने आगे जाने के लिए महारानी जी का आदेश पाने के लिए कहा था और अभी महारानी जी ने प्रवेश होने का आदेश नहीं दिया था। तभी . ___ तभी महारानी जी पाण्डाल से बाहर पाई और नमस्कार करके सभी नागरिको का अभिवादन किया। साथ ही भोजनशाला मे प्रवेश करने का निवेदन भी किया। ___ दरवान ने उन्हें प्रवेश पाने को लिए रास्ता खोल दिया। हजारो नागरिको मे से सैकडो तो घास को रोदते हुए चले गए और सैकडो जहा के तहा रुके रह गए। ___ चक्रवर्ती भरत यह सब कुछ देख रहे थे। पर मौन थे। महारानी जी ने रके हुए नागरिको को भी आदेश दिया कि वे भी प्रवेश फरे । बैठने की व्यवस्था विस्तृत है।
किन्तु कोई भी आगे नहीं बढा। तब भरत ने पछा--- 'पाप लोग प्रा क्यो नहीं रहे हैं । , 'महाराज ' एक नागरिक ने आगे वटपर निवेदन रिया । 'महाराज । प्राप तो स्वय विदेकी है, दयालु और नवमी है । म्या पाप भी हमे भाने की याज्ञा दे रहे है”