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कर लगी ।'
( १३२ )
'तो क्या मैं निश्चिन्त रहूँ "
'जी स्वामिन् ।'
'क्या मैं भी कुछ सहायता तुम्हे दे सकता हूँ "
अवस्य । आप कल ही पुरोहित से निमंत्रण देश के प्रमुख -
प्रमुख नगरो के नागरिको को दिलवा दीजिए ।'
'तिमवरण | किसबात के लिए "
'भोजन के लिए ।' 'क्यो ? ? ?'
'यह अभी नही बताया जाएगा ।'
'प्रोह ।' भरत विहँस उठे और बोले—- ठीक है, में भी आपकी इस कार्यक्रमका की सूचना मत्री को देता है। जैसा भी उचित समझो कर लेना ।
मंत्री को बुलवा कर सुभद्रा महारानी की प्राज्ञा जैमी थी वह सुनादी । मत्री ने शीघ्र ही प्रमुख प्रमुख नगरों के प्रमुख प्रमुख
arefoot को निश्चित तिथि कर भोजननिमत्रण दिलवा दिया । ज्योहि आमंत्रितो ने निमंत्रण प्राप्त किया त्यो ही प्रसन्नता से भोजन में शामिल होने की तैयारिया करने लगे ।
आज वह तिथि है, जिस तिथि को विशाल भोजन व्यवस्था होनी थी | महारानी सुभद्रा ने सम्पूर्ण व्यवस्था अपने अधीन कर लीनी थी। मनी, पुरोहित, सेवक, सेविकायें, सभी महारानी की प्राज्ञानुसार ग्रामत्रिती को विश्राम करने, भोजनशाला में बैठाने, भोजन परोसने एवं स्वागत आदि की तैयारी मे थे ।
हजारो उच्चकुलीय नागरिक या चुके थे। उन्हें विशाल विश्राम कक्ष में ठहराया गया, उनका सुरक्षित पुष्पमालाओ, जपान आदि से स्वागत किया गया । भोजन शाला में प्रवेश पाने