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'अरे । ।
'चौकिए नही प्राणाधार । पाप पुण्य के भण्डार है । मैं तो आपकी दासी हू ।'
'ग्रोह | तो यह बात है।' महाराज भरत व्हिस उठे । पुन पूछने लगे
'रानी । एक बात छु ।' 'पवश्य पूछिए स्वामिन् ।'
'हमारे पास अटूट सम्पत्ति है । पर इसका उपयोग यदि हम उपकार मे करे तो कैसे करे ?'
'इसमे उलझन की बात ही क्या है ? प्रत्येक स्थान पर नागरिको की सुविधा के लिए विभिन्न प्रसाधन बनवा दीजिए। दानशाला सुलवा दीजिए । रक्षा-निधि के भण्डार स्थापित करवा दीजिए और याचको को मुंहमागा दान दीजिए।'
'यह सबतो होता ही है।' 'तो फिर क्या शेप रह गया।" 'बताऊं। 'हाहा । अवश्य बताइए।,
'मेरा विचार है कि एक वर्ग ऐसा बनाया जाय जो स्वय सयमी हो, पठनपाठन मे लीन हो और प्रत्येक मनुष्य को सुसम्वृति को शिक्षा दे।
'उत्तम । अत्युत्तम । आपका यह विचार तो महान् उत्तम है महाराज।'
'लेकिन ऐसा वर्ग बनाया कहा से पाय ! हिसको बनाया जाय ? पासे बनाया जाय?" ___'अाप इसके लिए निश्चिन्त रहिए प्रभो में एक सप्ताह के मन्दर भाप कीमा का समाधान निकालने में सफलता प्राप्त